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________________ तृतीय बहुवक्तव्यतापद ] सत्रहवां पर्याप्तद्वार : पर्याप्ति की अपेक्षा से जीवों का अल्पबहुत्व २६६. एएसि णं भंते! जीवाणं पज्जत्ताणं अपज्जत्ताणं नोपज्जत्तनो अपज्जत्ताण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा नोपज्जत्तगनोअपज्जत्तगा १, अपज्जत्तगा अनंतगुणा २, पज्जत्तगा संखेज्जगुणा ३, । दारं १७॥ [२६६ प्र.] भगवन्! इन पर्याप्तक, अपर्याप्तक और नोपर्याप्तक-नोअपर्याप्तक जीवों में से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? [ २६७ [ २६६ उ.] गौतम ! १. सबसे अल्प नोपर्याप्तक-नोअपर्याप्तक जीव हैं, २. ( उनसे ) अपर्याप्तक जीव अनन्तगुणे हैं, (और उनसे भी ) ३. पर्याप्तक जीव संख्यातगुणे हैं। सत्रहवाँ (पर्याप्त ) द्वार ॥१७॥ विवेचन—सत्रहवाँ पर्याप्तद्वार : पर्याप्ति की अपेक्षा से जीवों का अल्पबहुत्व — प्रस्तुत (२६६वें) सूत्र में पर्याप्तक, अपर्याप्तक और नोपर्याप्तक-नोअपर्याप्तक जीवों के अल्पबहुत्व का निरूपण किया गया है । पर्याप्ति की अपेक्षा से जीवों की न्यूनाधिकता — सबसे कम नोपर्याप्तक-नोअपर्याप्तक जीव हैं, क्योंकि पर्याप्ति और अपर्याप्ति से रहित सिद्ध हैं, जो पर्याप्तकों और अपर्याप्तकों से कम हैं। उनकी अपेक्षा अपर्याप्तक अनन्तंगुणे हैं, क्योंकि साधारणवनस्पतिकायिक सिद्धों से अनन्तगुणे हैं, जो सर्वकाल में अपर्याप्तक ही पाए जाते हैं। उनकी अपेक्षा पर्याप्तक जीव संख्यातगुणे हैं । अठारहवाँ सूक्ष्मद्वार : सूक्ष्म आदि की दृष्टि से जीवों का अल्पबहुत्व २६७. एएसि णं भंते! जीवाणं सुहुमाणं बादराणं नोसुहुमनोबादराण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वातुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा णोसुहुमणोबादरा १, बादरा अनंतगुण २, सुहुमा असंखेज्जगुणा ३ । दार १८ ॥ [२६७ प्र.] भगवन्! सूक्ष्म, बादर और नोसूक्ष्म - नोब्रादर जीवों में से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ? [ २६७ उ.] गौतम ! १. सबसे अल्प नोसूक्ष्म - नोबादर जीव हैं, २. ( उनसे) बादर जीव अनन्तगुणे हैं और ( उनसे भी) ३. सूक्ष्म जीव असंख्यातगुणे हैं । अठारहवाँ (सूक्ष्म) द्वार ॥ १८ ॥ विवेचन – अठारहवाँ सूक्ष्मद्वार - प्रस्तुत सूत्र (२६७) में सूक्ष्म, बादर एवं नोसूक्ष्म-नोबादर जीवों के अल्पबहुत्व का निरूपण किया गया है। १. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक १३९
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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