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[प्रज्ञापना सूत्र हैं; एवं देवों से देवियां (देवांगनाएं) बत्तीसगुणी तथा बत्तीस अधिक होती हैं।" इनकी अपेक्षा अवेदक (सिद्ध) अनन्तगुणे होते हैं, क्योंकि स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेद से रहित, नौवें गुणस्थान के कुछ ऊपरी भाग से आगे के सभी जीव तथा सिद्ध जीव; ये सभी जीव अवेदी कहलाते हैं, और सिद्ध जीव अनन्त हैं। अवेदकों की अपेक्षा नपुसंकवेदी अनन्तगुणे हैं। क्योंकि नारक, एकेन्द्रिय जीव आदि सब नपुंसकवेदी होते हैं और अकेले वनस्पतिकायिक जीव अनन्त हैं, जो सब नपुंसकवेदी ही हैं। उनकी अपेक्षा सामान्यतः सवेदी जीव विशेषाधिक हैं, क्योंकि स्त्री-पुरुष-नपुंसकवेदी सभी जीवों का उनमें समावेश हो जाता है। सप्तम कषायद्वार : कषायों की अपेक्षा से जीवों का अल्पबहुत्व
२५४. एतेसि णं भंते! जीवाणं सकसाईणं कोहकसाईणं माणकसाईणं मायाकसाईणं लोभकसाईणं अकसाईण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा व बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? ।
___ गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा अकसायी, १. माणकसायी अणंतगुणा. २, कोहकसायी विसेसाहिया ३, मायकसाई विसेसाहिया ४, लोहकसाई विसेसाहिया ५, सकसाई विसेसाहिया ६। दारं ७॥
[२५४ प्र.] भगवन् ! इन सकषायी, क्रोधकषायी, मानकषायी, मायाकषायी, लोभकषायी और अकषायी जीवों में से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ?
[२५४ उ.] गौतम! १. सबसे थोड़े जीव अकषायी हैं, २. (उनसे) मानकषायी जीव अनन्तगुणे हैं, ३. (उनसे) क्रोधकषायी जीव विशेषाधिक हैं, ४. उनसे मायाकषायी जीव विशेषाधिक हैं, ५. उनसे लोभकषायी विशेषाधिक हैं और (उनसे भी) ६. सकषायी जीव विशेषाधिक हैं।
_ विवेचन—सप्तम कषायद्वार : कषायों की अपेक्षा जीवों का अल्पबहुत्व—प्रस्तुत सूत्र (२५४) में कषाय की अपेक्षा से जीवों के अल्पबहुत्व का विचार किया गया है।
कषायों की अपेक्षा जीवों की न्यूनाधिकता—अकषायी—कषायपरिणाम से रहित जीव सबसे कम हैं, क्योंकि कतिपय क्षीणकषायी आदि गुणस्थानवर्ती मनुष्य एवं सिद्ध जीव ही कषाय से रहित होते हैं। उनसे मानकषायी जीव अनन्तगुणे इसलिए हैं कि छहों जीव-निकायों में मानकषाय पाया जाता है। उनसे क्रोधकषाय वाले, मायाकषाय वाले एवं लोभकषाय वाले क्रमशः उत्तरोत्तर विशेषाधिक हैं, क्योंकि क्रोधादिकषायों के परिणाम का काल यथोत्तर विशेषाधिक है। पूर्व-पूर्व कषायों का उत्तरोत्तर कषायों में १. (क) प्रज्ञापनसूत्र मलय, वृत्ति, पत्रांक १३४-१३५ (ख) तिरिक्खजोणियपुरिसेहितो तिरिक्खजोणिय-इत्थीओ तिगुणीओ, तिरूवाहियाओ या तहा मणुस्सपुरिसेहितो
मणुस्सइत्थीओ सत्तावीसगुणीओ सत्तावीसरूवुत्तराओ य, तथा देवपुरिसेहिंतो देवित्थीओ बत्तीसगुणाओ बत्तीसरूवुत्तराओ॥
-जीवाभिगमसूत्र