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तृतीय बहुवक्तव्यतापद ]
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[२५२ प्र.] भगवन्! इन सयोगी ( योगसहित ), मनोयोगी, वचनयोगी, काययोगी और अयोगी जीवों में से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ?
[२५२ उ.] गौतम ! १. सबसे अल्प जीव मनोयोग वाले हैं, २. ( उनसे) वचनयोग वाले जीव असंख्यातगुणे हैं, ३. (उनकी अपेक्षा) अयोगी अनन्तगुणे हैं, ४. ( उनकी अपेक्षा) काययोगी अनन्तगुणे हैं और ( उनसे भी) ५. सयोगी विशेषाधिक हैं ।
विवेचन — पंचम योगद्वार : योगों की अपेक्षा से जीवों का अल्पबहुत्व - ( प्रस्तुत सूत्र (२५२ ) में सयोगी, अयोगी, मनो-वचन-काययोगी की अपेक्षा से अल्पबहुत्व का विचार किया गया है ।) सबसे कम मनोयोगी जीव हैं, क्योंकि संज्ञीपर्याप्त जीव ही मनोयोग वाले होते हैं और वे थोड़े ही हैं। उनसे वचनयोगी अंख्यातगुणे हैं, क्योंकि द्वीन्द्रिय आदि वचनयोगी संज्ञीजीवों से असंख्यातगुणे हैं, उनकी अपेक्षा अयोगी अनन्तगुणे हैं, क्योंकि सिद्धजीव अनन्त हैं। उनसे काययोग वाले जीव अनन्तगुणे हैं, क्योंकि अकेले वनस्पतिकायिकजीव ही सिद्धों से अनन्त हैं । यद्यपि अनन्त निगोदजीवों का एक शरीर होता है, तथापि उसी शरीर से सभी आहारादि ग्रहण करते हैं, इसलिए उन सभी के काययोगी होने के कारण उनके अनन्तगुणत्व में कोई बाधा नहीं आती। उनकी अपेक्षा सामान्यतः सयोगी विशेषाधिक हैं, क्योंकि सयोगी में द्वीन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक के जीव आ जाते हैं ।'
छठा वेदद्वार : वेदों की अपेक्षा से जीवों का अल्पबहुत्व
२५३. एएसि णं भंते! जीवाणं सवेदगाणं इत्थीवेदगाणं पुरिसवेदगाणं नपुंसक वेदगाणं अवेदगाण य कतरे कतरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ?
गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा पुरिसवेदगा १, इत्थीवेदगा संखेज्जगुणा २, अवेदगा अनंतगुणा ३, नपुंसकगवेदगा अनंतगुणा ४, सवेयगा विसेसाहिया ५ । दारं ६ ॥
[२५३ प्र.] भगवन्! इन सवेदी (वेदसहित ), स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, नपुंसकवेदी और अवेदी जीवों में कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य और विशेषाधिक हैं ?
[२५३ उ.] गौतम! १. सबसे थोड़े जीव पुरुषवेदी हैं, २. ( उनसे ) स्त्रीवेदी संख्यातगुणे हैं; ३. ( उनसे ) अवेदी अनन्तगुणे हैं, ४. ( उनकी अपेक्षा) नपुसंकवेदी अनन्तगुणे हैं और ( उनसे भी) ५. सवेदी विशेषाधिक हैं ।
विवेचन – छठा वेदद्वार : वेदों की अपेक्षा जीवों का अल्पबहुत्व प्रस्तुत सूत्र ( २५३ ) में वेदद्वार के माध्यम से जीवों के अल्पबहुत्व का प्रतिपादन किया गया है। सबसे थोड़े पुरुषवेदी हैं, क्योंकि संज्ञी तिर्यञ्चों, मनुष्यों और देवों में ही पुरुषवेद पाया जाता है । उनसे स्त्रीवेदी जीव संख्यातगुणे अधिक हैं, क्योंकि जीवाभिगमसूत्र मे कहा हैं — “तिर्यंचयोनिक पुरुषों की अपेक्षा तिर्यंचयोनिक" स्त्रियाँ तीन गुणी और अधिक होती हैं तथा मनुष्यपुरुषों से मनुष्यस्त्रियाँ सत्तावीसगुणी एवं सत्तावीस अधिक होती १. प्रज्ञापनासूत्र. मलय वृत्ति, पत्रांक १३४
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