SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 360
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीय बहुवक्तव्यतापद] [२५९ क्रमशः सद्भाव है ही तथा लोभकषायी की अपेक्षा सकषायी जीव विशेषाधिक हैं, क्योंकि सामान्य कषायोदय वाले जीव कुछ अधिक ही हैं, उनमें मानादि कषायोदय वाले सभी जीवों का समावेश हो जाता है। __सकषायी शब्द का विशेषार्थ-कषाय शब्द से कषायोदय अर्थ ग्रहण करना चाहिए। इस दृष्टि से सकषाय का अर्थ होता है—कषायोदयवान् या जिसमें वर्तमान में कषाय विद्यमान है वह, अथवा जिसमें विपाकावस्था को प्राप्त कषायकर्म के परमाणु अपने उदय को प्रदर्शित कर रहे हैं, वह जीव। अष्टम लेश्याद्वार : लेश्या की अपेक्षा जीवों का अल्पबहुत्व २५५. एएसि णं भंते! जीवाणं सलेस्साणं किण्हलेस्साणं नीललेस्साणं काउलेस्साणं तेउलेस्साण पम्हलेस्साणं सुक्कलेस्साणं अलेस्साण य कतरे कतरेहितो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा ? गोयमा? सव्वत्थोवा जीवा सुक्कलेस्सा १, पम्हलेस्सा संखेज्जगुणा २, तेउलेस्सा संखेज्जगुणा ३, अलेस्सा अणंतगुणा ४, काउलेस्सा अणंतगुणा ५, णीललेस्सा विसेसाहिया ६, किण्हलेस्सा विसेसाहिया ७, सलेस्सा विसेसाहिया ८। दारं ८॥ [२५५ प्र.] भगवन्! इन सलेश्यों, कृष्णलेश्या वालों, नीललेश्या वालों कापोतलेश्या वालों तेजोलेश्या वालों, पद्मलेश्या वालों. शुक्ललेश्या वालों एवं लेश्यारहित (अलेश्य)जीवों में से कौन किनसे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? _ [२५५ उ.] गौतम! १. सबसे थोड़े शुक्ललेश्या वाले जीव हैं, २. (उनसे) पद्मलेश्या वाले संख्यातगुणे हैं, ३. (उनसे) तेजोलेश्या वाले जीव संख्यातगुणे हैं, ४. (उनसे) लेश्यारहित जीव अनन्तगुणे हैं, ५. (उनसे) कापोतलेश्या वाले अनन्तगुणे हैं, ६. (उनसे) नीललेश्या वाले विशेषाधिक हैं; ७. (उनसे) कृष्णलेश्या वाले विशेषाधिक हैं, ८. (उनसे) सलेश्य जीव विशेषाधिक हैं। अष्टमद्वार ।। ८ ॥ विवेचन–अष्टम लेश्याद्वार : लेश्या की अपेक्षा जीवों का अल्पबहुत्व—प्रस्तुत सूत्र (२५५) में सलेश्य, पृथक्-पृथक् षट्लेश्यायुक्त एवं अलेश्य जीवों के अल्पबहुत्व की प्ररूपणा की गई है। लेश्याओं की अपेक्षा से अल्पबहुत्व- सबसे अल्प शुक्ललेश्या वाले जीव हैं, क्योंकि शुक्ललेश्या लान्तक से लेकर अनुत्तर वैमानिक देवों तक में, कतिपय गर्भज कर्मभूमि के संख्यातवर्ष की आयु वाले मनुष्यों में तथा कतिपय संख्यातवर्ष की आयुवाले तिर्यंच-स्त्रीपुरुषों में ही पाई जाती है। उनकी अपेक्षा पद्मलेश्या वाले जीव संख्यातगुणे हैं, क्योंकि पद्मलेश्या सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोककल्पवासी देवों में, बहुसंख्यक गर्भज-कर्मभूमिज संख्यात वर्ष की आयु वाले मनुष्य-स्त्रीपुरुषों में तथा गर्भज-तिर्यंच-स्त्रीपुरुषों में पाई जाती है और ये समुदित सनत्कुमार देव आदि, लान्तकदेव आदि से संख्यातगुणे १. प्रज्ञापनसूत्र मलय, वृत्ति, पत्रांक १३५
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy