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________________ २५४] [ प्रज्ञापना सूत्र अनन्तगुणे अधिक हैं, क्योंकि समुद्रों में जल की प्रचुरता होती है । उनकी अपेक्षा बादर वायुकायिक असंख्यातगुणे अधिक हैं, क्योंकि बादर निगोद में अनन्त जीव होते हैं । बादर जीव उनसे विशेषाधिक होते हैं, क्योंकि बादर द्वीन्द्रिय आदि सभी जीवों का उनमें समावेश होता है । ७-८. बादर अपर्याप्तकों तथा पर्याप्तकों का अल्पबहुत्व — बादर जीवों के अपर्याप्तकों एवं पर्याप्तकों अल्पबहुत्व का क्रम भी प्राय: पूर्वसूत्र (सू. २४२) के समान है। बादर पर्याप्तकों के अल्पबहुत्व में सिर्फ प्रारम्भ में अन्तर हैं - वहाँ सबसे अल्प बादर त्रसकायिक अपर्याप्तक के बदले बादर तेजस्कायिक पर्याप्तक हैं। शेष सब पूर्ववत् ही है । इनके अल्पबहुत्व का स्पष्टीकरण भी पूर्ववत् समझ लेना चाहिए। ९. बादर पर्याप्तक- अपर्याप्तकों का पृथक्-पृथक् अल्पबहुत्व - बादर जीवों में एक-एक पर्याप्तक के आश्रित असंख्येय बादर अपर्याप्तक उत्पन्न होते हैं, इस नियम से बादर जीवों, बादर पृथ्वींकायिकों आदि में सर्वत्र पर्याप्तकों से अपर्याप्तक असंख्यातगुणे अधिक होते हैं । १०. समुदित रूप से बादर, बादर पृथ्वीकायिकादि पर्याप्तक - अपर्याप्तकों का अल्पबहुत्वसबसे कम बादर तेजस्कायिक पर्याप्तक हैं । बादर त्रसकायिक पर्याप्तक उनसे असंख्यातगुणे हैं, बादर कायिक अपर्याप्तक, बादर प्रत्येक वनस्पतिकायिक पर्याप्तक, बादर निगोद पर्याप्तक, बादर पृथ्वीकायिक पर्याप्तक, बादर अप्कायिक पर्याप्तक एवं बादर वायुकायिक पर्याप्तक क्रमशः उत्तरोत्तर असंख्यगुणे हैं । इनके अल्पबहुत्व को पूर्वोक्त युक्तियों से समझ लेना चाहिए। उनसे बादर वनस्पतिकायिक पर्याप्त अनन्तगुणे हैं, क्योंकि प्रत्येक बादरनिगोद में वे अनन्त - अनन्त होते हैं। उनकी अपेक्षा समुच्चय बादर पर्याप्त विशेषाधिक हैं, क्योंकि उनमें बादर तेजस्कायिक आदि सभी का समावेश हो जाता है । बादर पर्याप्तों की अपेक्षा बादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्तक असंख्येयगुणे हैं, उनसे बादर अपर्याप्तक एवं बादर क्रमश: उत्तरोत्तर विशेषाधिक हैं, इसका कारण पूर्ववत् समझ लेना चाहिए । ११. समुच्चय में सूक्ष्म - बादरों का अल्पबहुत्व - (सू. २४७ के अनुसार) सबसे कम बादर त्रसकायिक हैं, उसके बाद बादर वायुकायिकपर्याप्त बादरगत विकल्पों का अल्पबहुत्व पूर्ववत् समझना चाहिए। तदनन्तर सूक्ष्म निगोदपर्यान्त सूक्ष्मगत विकल्पों का अल्पबहुत्व पूर्ववत् जान लेना चाहिए। उसके पश्चात् बादरवतस्पतिकायिक अनन्तगुणे हैं, क्योंकि प्रत्येक बादरनिगोद में अनन्त - अनन्त जीव होते हैं । उनसे बादर अपर्याप्तक विशेषाधिक हैं, क्योंकि बादर तेजस्कायिक आदि का भी उनमें समावेश हो जाता हैं। उनसे सूक्ष्म वनस्पतिकायिक असंख्यातगुणे हैं; क्योंकि बादर निगोदों से सूक्ष्म निगोद असंख्यातगुणे हैं। उनसे सामान्यतः सूक्ष्म विशेषाधिक हैं, क्योंकि सूक्ष्म तेजस्कायिकादि का भी उनमें समावेश हो जाता है । १२-१३. सूक्ष्म- बादर के पर्याप्तकों एवं अपर्याप्तकों का अल्पबहुत्व - (सू. २४८ में अनुसार) अपर्याप्तकों में सबसे अल्प बादर त्रसकायिक अपर्याप्त हैं। उसके पश्चात् बादर तेजस्कायिक, प्रत्येक - शरीर बादर वनस्पतिकायिक, बादर निगोद, बादर पृथ्वीकायिक, बादर अप्कायिक, बादर वायुकायिक
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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