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________________ १९०] [प्रज्ञापना सूत्र गोयमा! सोहम्मस्स कप्पस्स उप्पिं सपक्खि सपडिदिसिं बहूई जोयणाई बहूई जोयणसताई बहूई जोयणसहस्साई बहूई जोयणसतसहस्साई बहुगीओ जोयणकोडीओ बहुगीओ जोयणकोडाकोडीओ उड्ढं दूरं उप्पइत्ता एत्थणं सणंकुमारे णामं कप्पे पाईण-पडीणायते उदीणदाहिण-वित्थिपणे जहा सोहम्मे (सु. १९७ [१]) जाव पडिरूवे एत्थ णं सणंकुमाराणं देवाणं बारस विमाणावाससतसहस्सा भवंतीति मक्खातं। ते णं विमाणा सव्वरयणामया जाव (सु. १९६) पडिरूवा। तेसि णं विमाणाणं बहुमज्झदेसभागे पंच वडेंसगा पण्णत्ता। ते जहा—असोमवडेंसए १ सत्तिवण्णवडेंसए २ चंपगवडेंसए ३ चूयवडेंसए ४ मझे यऽत्थ सणंकुमारवडेंसए ५। ते णं वडेंसया सव्वरयणामया अच्छा जाव (सु. १९६) पडिरूवा। एत्थ णं सणंकुमारदेवाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता। तिसु वि लोगस्स असंखेज्जइभागे। तत्थ णं बहवे सणंकुमारा देवा परिवसंति महिड्ढिया जाव (सु. १९६) पभासेमाणा विहरंति। णवरं अग्गमहिसीओ णत्थि। [१९९-१ प्र.] भगवन् ! पर्याप्तक और अपर्याप्तक सनत्कुमार देवों के स्थान कहाँ कहे गए हैं ? भगवन् ! सनत्कुमार देव कहाँ निवास करते हैं ? [१९९-१ उ.] गौतम! सौधर्म-कल्प के ऊपर समान (पूर्वापर दक्षिणोत्तररूप) पक्ष (पार्श्व) और समान प्रतिदिशा (विदिशा) में बहुत योजन आदि अनेक सौ योजन अनेक हजार योजन दूर, सनत्कुमार नामक कल्प कहा गया है, जो पूर्व-पश्चिम में लम्बा और उत्तर-दक्षिण में विस्तीर्ण है, (इत्यादि सब वर्णन) सौधर्मकल्प के (सू. १९७-१ में उल्लिखित वर्णन के) अनुसार यावत् 'प्रतिरूप है' तक (समझना चाहिए)। इसी (सनत्कुमारकल्प) में सनत्कुमार देवों के बारह लाख विमान हैं, ऐसा कहा गया है। वे विमान पूर्णरूप से रत्नमय हैं, यावत् 'प्रतिरूप हैं' तक (सू. १९६ के अनुसार पूर्ववत् वर्णन समझना चाहिए)। उन विमानों के एकदम बीचोंबीच में पांच अवतंसक कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं-१अशोकावतंसक, २–सप्तपर्णावतंसक, ३-चंपकावतंसक, ४-चूतावतंसक और इनके मध्य में ५सनत्कुमारावतंसक है। वे अवतंसक सर्वरत्नमय, स्वच्छ हैं यावत् प्रतिरूप हैं, (तक का वर्णन सू. १९६ के अनुसार) (पूर्ववत् समझना चाहिए)। इन (अवतंसको) में पर्याप्तक और अपर्याप्तक सनत्कुमार देवों के स्थान कहे गए हैं। (ये स्थान) तीनों अपेक्षाओं से लोक के असंख्यातवें भाग में हैं। उन (स्थानों) में बहुत-से सनत्कुमार देव निवास करते हैं, जो महर्द्धिक हैं, (इत्यादि सब वर्णन सू १९६ के अनुसार) यावत् 'प्रभासित करते हुए विचरण करते हैं ' तक पूर्ववत् समझना चाहिए। विशेष यह है कि यहाँ अग्रमहिषियां नहीं हैं। [२] सणंकुमारे यऽत्थ देविंदे देवराया परिवसति, अरयंबरवत्थधरे सेसं जहा सक्कस (सु. १९७ [२]) । से णं तत्थ बारसहं विमाणावाससतसहस्साणं बावत्तरीए समाणियसाहस्सीणं सेसं जहा सक्कस (सु. १९७ [२]) अग्गमहिसीवजं। णवरं चउण्हं बावत्तरीणं आयरक्खदेवसाहस्सीणं जाव (सु. १९६) विहरइ।
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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