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________________ १८८] [प्रज्ञापना सूत्र ऐरावत हाथी जिसका वाहन है, जो सुरेन्द्र है, रजरहित स्वच्छ वस्त्र का धारक है, संयुक्त माला और मुकुट पहनता है तथा जिसके कपोलस्थल नवीन स्वर्णमय, सुन्दर, विचित्र एवं चंचल कुण्डलों से विलिखित होते हैं। वह महर्द्धिक है, (इत्यादि आगे का सब वर्णन) यावत् प्रभासित करता हुआ, तक (सू. १९६ के अनुसार) पूर्ववत् (जानना चाहिए)। __वह (देवेन्द्र देवराज शक्र) वहाँ बत्तीस लाख विमानावासों का, चौरासी हजार सामानिक देवों का, तेतीस त्रायस्त्रिंशक देवों का, चार लोकपालों का, आठ सपरिवार अग्रमहिषियों का, तीन परिषदों का, सात सेनाओं का, सात सेनाधिपति देवों का, चार चौरासी हजार—अर्थात्-तीन लाख छत्तीस हजार आत्मरक्षक देवों का तथा अन्य बहुत-से सौधर्मकल्पवासी वैमानिक देवों और देवियों का आधिपत्य एवं अग्रेसरतव करता हुआ, (इत्यादि सब वर्णन सू. १९६ के अनुसार) यावत् 'विचरण करता है' तक पूर्ववत् (समझना चाहिए)। १९८. [१] कहि णं भंते! ईसाणगदेवाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते! ईसाणदेवा परिवसंति ? ___ गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वतस्स उत्तरेणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिजाओ भूमिभागाओ उड्ढे चंदिम-सूरिय-गहगण-णक्खत्त-तारारूवाणं बहूइं जोयणसताई बहूइं जोयणसहस्साई जाव (सु १९७ [१]) उप्पइत्ता एत्थ णं ईसाणे णामं कप्पे पण्णत्ते पाईणपडीणायते उदीण-दाहिणवित्थिपणे एवं जहा सोहम्मे (सु. १९७ [१]) जाव पडिरूवे। तत्थ णं ईसाणगदेवाणं अट्ठावीसं विमाणावाससतसहस्सा हवंतीति मक्खातं। ते णं विमाणा सव्वरयणामया जाव पडिरूवा। तेसि णं बहुमज्झदेसभाए पंच वडेंसगा पण्णत्ता, तं जहा—अंकवडेंसए १ फलिहवडेंसए २ रतणवडेंसए ३ जातरूववडेंसए ४ मज्झे एत्थ ईसाणवडेंसए ५। ते णं वडेंसया सव्वरयणामया जाव (सु. १९६ ) पडिरूवा। ___एत्थ णं ईसाणग देवाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता। तिसु व लोगस्स असंखेजतिभागे। सेसं जहा सोहम्मगदेवाणं जाव (सु. १९७ [१]) विहरंति। [१९८-१ प्र.] भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त ईशानक देवों के स्थान कहाँ कहे गए हैं ? भगवन् ! ईशानक देव कहाँ निवास करते हैं ? [१९८-१ उ.] गौतम! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में सुमेरुपर्वत के उत्तर में, इस रत्नप्रभापृथ्वी के अत्यधिक सम और रमणीय भूभाग से ऊपर, चन्द्र, सूर्य, ग्रहगण, नक्षत्र और तारारूप ज्योतिष्कों से अनेक सौ योजन, अनेक हजार योजन, अनेक लाख योजन, बहुत करोड़ योजन और बहुत कोटाकोटी योजन ऊपर दूर जाकर ईशान नामक कल्प (देवलोक) कहा गया है, जो पूर्व-पश्चिम में लम्बा और
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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