________________
१८६]
[प्रज्ञापना सूत्र
वहाँ अपने-अपने लाखों विमानावासों का, अपने-अपने हजारों सामानिक देवों का, अपने-अपने त्रायस्त्रिंशक देवों का, अपने-अपने लोकपालों का, सपरिवार अपनी-अपनी अग्रमहिषियों का, अपनी-अपनी परिषदों का, अपनी-अपनी सेनाओं का, अपने-अपने सेनाधिपति देवों का, अपने-अपने हजारों आत्मरक्षक देवों का तथा अन्य बहुत-से वैमानिक देवों और देवियों का आधिपत्य, पुरोवर्तित्व (अग्रेसरत्व), स्वामित्व, भर्तृत्व महत्तरकत्व, आज्ञैश्वरत्व तथा सेनापतित्व करते-कराते और पालते-पलाते हुए निरन्तर होने वाले महान् नाट्य, गीत तथा कुशल वादकों द्वारा बजाये जाते हुए वीणा, तल, ताल, त्रुटित घनमृदंग आदि वाद्यों की समुत्पन्न ध्वनि के साथ दिव्य शब्दादि कामभोगों को भोगते हुए विचरण करते हैं।
१९७. [१] कहि णं भंते! सोहम्मगदेवाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते! सोहम्मगदेवा परिवसंति ?
गोयमा! जंबुद्दीवे दोवे मंदरस्स पव्वतस्स दाहिणेणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिज्जाओ भूमिभागाओ उड्ढे चंदिम-सूरिय-गह-नक्खत्त-तारारूवाणं बहूणि जोयणसताणि बहूई जोयणसहस्साई बहूइं जोयणसतसहस्साइं बहुगीओ जोयणकोडीओ बहुगीओ जोयणकोडाकोडीओ उड्ढे दूरं उप्पइत्ता एत्थ णं सोहम्मे णामं कप्पे पण्णत्ते पाईण-पडीणायते उदीण-दाहिणवित्थिण्णे अद्धचंद-संठाणसंठिते अच्चिमालिभासरासिवण्णाभे असंखेन्जाओ जोयणकोडीओ असंखेन्जओ जोयणकोडाकोडीओ आयाम-विक्खंभेणं, असंखेज्जाओ जोयणकोडाकोडीओ परिक्खेवेणं, सव्वरयणामए अच्छे जाव (सु. १९६) पडिरूवे। तत्थ णं सोहम्मगदेवाणं बत्तीसं विमाणावाससतसहस्सा हवंतीति मक्खातं। ते णं विमाणा सव्वरयणामया अच्छा जाव (सु. १०६) पडिरूवा।
तेसि णं विमाणाणं बहुमझदेसभागे पंच वडेंसया पण्णत्ता। तं जहा—असोगवडेंसए १ सत्तिवण्णवडेंसए २ चंपगवडेंसए ३ चूयवडेंसए ४ मझे यऽत्थ सोहम्मवडेंसए ५। ते णं वडेंसया सव्वरयणामया अच्छा जाव (सु. १९६) पडिरूवा। एत्थ णं सोहम्मगदेवाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता। तीसु वि लोगसस असंखेज्जइभागे।
तत्थ णं बहवे सोहम्मगदेवा परिवसंति महिड्डीया जाव (सु. १९६) पभासेमाणा। ते णं तत्थ साणं साणं विमाणावाससतसहस्साणं साणं साणं सामाणियसाहसीणं एवं जहेव ओहियाणं (सु. १९६) तहेव एतेसिं पि भाणितव्वं जाव आयरक्खदेवसाहस्सीणं अण्णेसिं बहूणं सोहम्मगकप्पवासीणं वेमाणियाणं देवाण य देवीण य आहेवच्चं पोरेवच्चं जाव (सु. १९६) विहरंति।
[१९७-१ प्र.] भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त सौधर्मकल्पगत देवों के स्थान कहाँ कहे हैं ? भगवन् ! सौधर्मकल्पगत देव कहाँ निवास करते हैं ?
[१९७८-१ उ.] गौतम! जम्बूद्वीपनामक द्वीप में सुमेरु पर्वत के दक्षिण में, इस रत्नप्रभापृथ्वी के अत्यधिक सम एवं रमणीय भूभाग से ऊपर चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र तथा तारकरूप ज्योतिष्कों के अनेक