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________________ १७४] [प्रज्ञापना सूत्र नसें (शिराएँ) होती हैं, दिव्वाए पभाए -दिव्य प्रभा से, भवनावासगत प्रभा से। दिव्वाए छायाए - दिव्य छाया से -देवों के समूह की शोभा से। दिव्वाए अच्चीए -शरीरस्थ रत्नों आदि के तेज की ज्वाला से। दिव्वेणं तेएण-शरीर से निकलते हुए दिव्य तेज से। दिव्वाए लेसाए -देह के वर्ण की दिव्य सुन्दरता से। आणाईसरसेणावच्चं—आज्ञा से ईश्वरत्व (आज्ञा पर प्रभुत्व) एवं सेनापतित्व करते हुए। भवनवासियों के मुकुट और आभूषणों में अंकित चिह्न -मूलपाठ में असुरकुमारादि की पहिचान के लिए चिह्न बताए हैं। वे उनके मुकुटों तथा अन्य आभूषणों में अंकित होते हैं। समस्त वाणव्यन्तर देवों के स्थानों की प्ररूपणा १८८. कहि णं भंते! वाणमंतराणं देवाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते! वाणमंतरा देवा परिवसंति ? गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए रयणामयस्स कंडस्स जोयणसहस्सबाहल्लस्स उवरि एगं जोयणसतं ओगाहिता हेट्ठा वि एगं जोयणसतं वज्जेत्ता मझे अट्ठसु जोयणसएसु, एत्थ णं वाणमंतराणं देवाणं तिरियमसंखेज्जा भोमेजणगरावाससतसहस्सा भवंतीति मक्खातं। ते णं भोमेज्जा णगरा बाहिं वटा अंतो चउरंसा अहे पुक्खरकणियासंठाणसंठिता उक्किण्णंतरविउलगंभीरखाय-परिहा पागार-ऽट्टालय-कवाड-तोरण-पडिदुवारदेसभागा जंतसयग्घि-मुसल-मुसुंढि-परियरिया अओज्झा सदाजता सदागुत्ता अडयालकोटगरइया अडयालकयवणमाला खेमा सिवा किंकरामरदंडोवरक्खिया लाउल्लोइयमहिया गोसीससरसरत्तचंदणदद्दरदिन्नपंचंगुलितला उवचित-चंदणकलसा चंदणघडसुकयतोरणपडिदुवारदेसभागा आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्धारियमल्लदामकलावा पंचवण्णसरससुरभिमुक्कपुप्फपुंजोवयारकलिया कालागरु-पवरकुंदुरुक्क-तुरुक्कधूवमघमघेतगंधुडुयाभिरामा सुगंधवरगंधगंधिया गंधवट्टिभूता अच्छरगणसंघसंविकिण्णा दिव्वतुडितसद्दसंपणदिता पगाड-मालाउलाभिरामा सव्वरयणामया अच्छा सण्हा लण्हा घट्टा मट्ठा नीरया निम्मला निप्पंका णिक्कंकडच्छाया सप्पभा समरीया सउज्जोता पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा, एत्थ णं वाणमंतराणं देवाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता। तिसु वि लोगस्स असंखेन्जइभागे। तत्थ णं वहवे वाणमंतरा देवा परिवसंति। त जहा—पिसाया १ भूया २ जक्खा ३ रक्खसा ४ किन्नरा ५ किंपुरिसा ६ भुयगवइणो य महाकाया ७ गंधव्वगणा य निउणगंधव्वगीतरइणो ८, अणवण्णिय १, पणवण्ण्यि २, इसिवाइय ३, भूयवाइय ४, कंदित ५, महाकंदिया य ६, कुहंड ७, पयगदेवाण। १. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक ८५ से ९५ तक
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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