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द्वितीय स्थानपद]
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चउसट्ठी सट्ठी, १ खलु छ च्च सहस्सा २-१० उ असुरवज्जाणं। सामाणिया उ एए, चउग्गुणा आयरक्खा उ ॥१४२॥ चमरे १ धरणे २ तह वेणुदेव ३ हरिकंत ४ अग्गिसीहेय। पुण्णे ६ जलकंते य ७ अमिय ८ विलंबे य ९ घोसे य १०॥१४३॥ बलि१ भूयाणंदे २ वेणुदालि ३ हरिस्स४अग्गिमाणव५ वसिठे६ । जलप्पहे ७ अमियवाहण ८ पभंजणे या ९ महाघोसे १०॥१४४॥ उत्तरिल्लाणं जाव विहरंति। काला असुरकुमारा, णागा उदही य पंडरा दो वि। वरकणगणिहसगोरा होंति सुवण्णा दिसा थणिया ॥१४५॥ उत्तत्तकणगवन्ना विजू अग्गी य होति दीवा य। सामा पियंगुवण्णा वाउकुमारा मुणेयव्वा॥ १४६ ॥ असुरेसु हाँति रत्ता, सिलिंधपुप्फप्पभा य नागुदही। आसासगवसणधरा होंति सुवण्णा दिसा थणिया॥ १४७॥ णीलाणुरागवसणा विजू अग्गी य होंति दीवा य।
संझाणुरागवसणा वाउकुमारा मुणेयव्वा ॥१४८॥ [१८७] इस प्रकार जैसी वक्तव्यता सुपर्णकुमारों की कही है, वैसी ही शेष भवनवासियों की भी और उनके चौदह इन्द्रों की कहनी चाहिए। विशेषता यह है कि उनके भवनों की संख्या में, इन्द्रों के नामों में, उनके वर्णों तथा परिधानों (वस्त्रों) में अन्तर है, जो इन गाथाओं द्वारा समझ लेना चाहिए - (गाथाओं का अर्थ-) भवनावास –१–(असुरकुमारों के) चौसठ लाख हैं, २ – (नागकुमारों के) चौरासी लाख हैं, ३—(सुपर्णकुमारों के) बहत्तर लाख हैं, ४-(वायुकुमारों के) छियानवे लाख हैं ॥ १३८ ॥ ५ से १० तक अर्थात् (द्वीपकुमारों, दिशाकुमारों, उदधिकुमारों, विद्युतकुमारों, स्तनितकुमारों और अग्निकुमारों) इन छहों के युगलों के प्रत्येक के छहत्तर-छहत्तर लाख (भवनवास) हैं ॥ १३९ ॥
दक्षिणदिशा के (असुरकुमारों आदि के) भवनों की संख्या (इस प्रकार है)-१-(असुरकुमारों के) चौंतीस लाख, २-(नागकुमारों के) चवालीस लाख, ३-(सुपर्णकुमारों के) अड़तीस लाख, ४-(वायुकुमारों के) पचास लाख। ५ से १० तक –(द्वीपकुमारों, उदधिकुमारों, विद्युतकुमारों स्तनितकुमारों और अग्निकुमारों के) प्रत्येक के चालीस-चालीस लाख भवन (भवनावास) हैं ॥ १४० ॥
उत्तर दिशा के (असुरकुमारों आदि के) भवनों की संख्या (इस प्रकार है-) १-(असुरकुमारों के) तीस लाख, २-(नागकुमारों के) चालीस लाख, ३-(सुपर्णकुमारों के) चौंतीस लाख, ४(वायुकुमारों के) छयालीस लाख, ५ से १० तक – अर्थात् द्वीपकुमारों, दिशाकुमारों, उदधिकुमारों