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________________ १७०] [प्रज्ञापना सूत्र [१८५-२] इन्हीं (पूर्वोक्त स्थानों) में (दाक्षिणात्य) सुपर्णेन्द्र सुपर्णकुमारराज वेणुदेव निवास करता है; शेष सारा वर्णन नागकुमारों के वर्णन की तरह (सू. १८२-२ के अनुसार) समझ लेना चाहिए। १८६. [१] कहि णं भंते! उत्तरिल्लाणं सुवण्णकुमाराणं देवाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते! उत्तरिल्ला सुवण्णकुमारा देवा परिवसंति ? गोयमा! इमीसेरयणप्पभाए जाव एत्थ णं उत्तरिल्लाणं सुवण्णकुमाराणं चोत्तीसं भवणावाससतसहस्सा भवंतीति मक्खातं। ते णं भवणा जाव एत्थ णं बहवे उत्तरिल्ला सुवण्णकुमारा देवा परिवसंति महिड्डिया जाव (सु. १७७) विहरंति। [१८६-१ प्र.] भगवन् ! उत्तरदिशा के पर्याप्त और अपर्याप्त सुपर्णकुमार देवों के स्थान कहां कहे गए हैं ? भगवन् ! उत्तरदिशा के सुपर्णकुमार देव कहाँ निवास करते हैं ? । । [१८६-१ उ.] गौतम! एक लाख अस्सी हजार योजन मोटी इस रत्नप्रभापृथ्वी के एक लाख अठहत्तर योजन में, आदि (समग्र वर्णन पूर्ववत् कहना चाहिए)। यावत् यहाँ उत्तरदिशा के सुपर्णकुमार देवों के चौंतीस लाख भवनावास हैं, ऐसा कहा गया है। वे भवन (भवनावास) जिनका समग्र वर्णन पूर्ववत् समझना चाहिए यावत् यहाँ (इन्हीं भवनावासों में) बहुत-से उत्तरदिशा के सुपर्णकुमार देव निवास करते हैं, जो कि महर्द्धिक हैं; यावत् विचरण करते हैं (तक का शेष समग्र वर्णन सू. १७७ के अनुसार) समझ लेना चाहिए। । [२] वेणुदाली यऽत्थ सुवण्णकुमारिंदे सुवण्णकुमारराया परिवसति महिड्डीए, सेसं जहा णागकुमाराणं (सु. १८३ [२])। [१८६-२] इन्हीं (पूर्वोक्त स्थानों) में यहाँ सुपर्णकुमारेन्द्र सुपर्णकुमारराज वेणुदाली निवास करता हैं, जो महर्द्धिक है; शेष सारा वर्णन नागकुमारों की तरह (सू. १८३-२ के अनुसार) समझना चाहिए। १८७. एवं जहा सुवण्णकुमाराणं वत्तव्वया भणिता तहा सेसाण वि चोहसण्हं इंदाणं भणितव्वा। नवरं भवणनाणत्तं इंदणाणत्तं वण्णणाणत्तं परिहाणणाणत्तं च इमाहिं गाहाहिं अणुगंतव्वं चोवढेि असुराणं १ चुलसीतो चेव होंति णागाणं २। बावत्तरि सुवण्णे ३ वाउकुमाराण छण्णउई ४ ॥१३८॥ दीव- दिसा-उदहीणं विज्जुकुमारिद-थणिय-मग्गीणं। छण्हं पि जुअलयाणं छावत्तरिमो सतसहस्सा १० ॥१३९॥ चोत्तीसा १ चोयाला २ अट्ठत्तीसं च सयसहस्साई ३। पण्णा ४ चत्तालीसा ५-१० दाहिणओ होंति भवणाई॥१४०॥ तीसा १ चत्तालीसा २ चोत्तीसं चेव सयसहस्साई ३। छायाला ४ छत्तीसा ५-२० उत्तरओ होंति भवणाइं॥१४१॥
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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