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का प्रायः अनुसरण किया गया है। इसकी प्रति उपलब्ध कराने में सौजन्यमूर्ति श्री कृष्णचन्द्राचार्यजी (पंचकूला) का सहयोग स्मरणीय रहेगा। एतदर्थ उनके प्रति हम आभारी हैं। इसके अतिरिक्त अनेक आगमों जैन-बौद्ध ग्रन्थों, पन्नवणासूत्र के थोकड़ों आदि से सहायता ली गई है, उन सबके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करना हमारा कर्तव्य है।
हम यहाँ प्रसंगवश श्रमणसंघ के प्रथम आचार्य जैनागमरत्नाकर स्व. गुरुदेव पूज्य श्री आत्मारामजी महाराज का पुण्यस्मरण किये बिना नहीं रह सकते, जो आजीवन आगमोद्धार के पुनीत कार्य में संलग्न रहे थे और अन्तिम समय में भी उनके आगम-निष्ठापूर्ण हृदयोद्गार थे- 'मेरे पीछे भी श्रमणसंघीय आचार्यश्री, युवाचार्यश्री इस भगीरथ श्रुतसेवा को चलाते रहें, यही मेरी परमकृपालु शासनदेव से मंगलमयी हार्दिक प्रार्थना
उनके ही द्वारा परिष्कृत आगमोद्धार के पुण्यपथ पर चल कर श्रमणसंघीय युवाचार्य पंडितरत्न मिश्रीमलजी म. सा. के नेतृत्व में हमने प्रज्ञापना जैसे दुरूह एवं गहन आगम के सम्पादन का कार्य हाथ में लिया। इस सम्पादनकार्य में मै अपने सहयोगिजनों को कैसे विस्मृत कर सकता हूँ।
आगमतत्त्वमनीषी प्रवचनप्रभाकर श्री सुमेरमुनिजी, विद्वद्वर्य पं. रत्न मुनिश्री नेमिचन्द्रजी के प्रति मैं हृदय से कृतज्ञ हूँ, जिन्होंने निष्ठापूर्वक इस आगमकार्य के सम्पादन में सहयोग दिया है। आगममर्मज्ञ पं. शोभाचन्द्रजी भारिल्ल एवं संपादनकलाविशारद साहित्यमहारथी श्रीचन्दजी सुराना की श्रुतसेवाओं को कैसे भुलाया जा सकता है? जिन्होंने इस शास्त्रराज को संशोधित-परिष्कृत करके मुद्रित करने तक का दायित्व सफलतापूर्वक निभाया है। साथ ही, मैं अपने ज्ञात-अज्ञात सहयोगियों का हृदय से कृतज्ञ हूँ, जिन्होंने समयसमय पर योग्य परामर्श देकर मुझे उत्साहित किया है।
अपने सम्पादन के विषय में क्या कहूँ ? जैसा भी जितना भी अच्छे से अच्छा बन सकता था 'यावबुद्धिबलोदयम्' प्रज्ञापना का सम्पादन करने का मैंने प्रयत्न किया है। मैं दावा तो नहीं करता सर्वज्ञ महापुरुषों के पुनीत सिद्धांत-रहस्यों को खोलने का! मुझ जैसे अल्पज्ञ की भी आखिर एक सीमा है। फिर भी मुझे सात्त्विक सन्तोष अवश्य है कि आगमों के सुधी पाठकों को तथा शोधकर्ताओं को इस सम्पादन से अवश्य सन्तोष होगा।
- ज्ञान मुनि जैनस्थानक बनूड
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