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________________ १६८ ] [ प्रज्ञापना सूत्र देवों का, चार लोकपालों का, सपरिवार पांच अग्रमहिषियों का तीन परिषदों का, सात सैन्यों का, सात सेनाधिपति देवों का, चौवीस हजार आत्मरक्षक देवों का और अन्य बहुत-से दाक्षिणात्य नागकुमर देवों और देवियों का आधिपत्य और अग्रेसरत्व करता हुआ विचरण करता है । १८३. [१] कहि णं भंते! उत्तरिल्लाणं णागकुमाराणं देवाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते! उत्तरिल्ला णागकुमारा देवा परिवसंति ? गोयमा ! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वतस्स उत्तरेणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसतसहस्सबाहल्लाए उवरिं एगं जोयणसहस्सं ओगाहेत्ता हेट्ठा वेगं जोयणसहस्सं वज्जेत्ता मज्झे अट्ठहत्तरे जोयणसतसहस्से, एत्थ णं उत्तरिल्लाणं णागकुमाराणं देवाणं चत्तालीसं भवणावाससतसहस्सा भवतीति मक्खातं । णं भवणा बाहिं वट्टा सेसं जहा दाहिणिल्लाणं (सु. १८२ [१]) जाव विहरंति । [१८३-१ प्र.] भगवन् ! पर्याप्त और अपर्याप्त उत्तरदिशा के नागकुमार देवों के स्थान कहाँ कहे गए हैं ? भगवन् ! उत्तरदिशा के नागकुमार देव कहाँ निवास करते हैं? [१८३ - १ उ.] गौतम! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में सुमेरुपर्वत के उत्तर में, एक लाख अस्सी हजार मोटी इस रत्नप्रभा पृथ्वी के ऊपर एक हजार योजन अवगाह करके और नीचे एक हजार योजन छोड़कर, बीच एक लाख अठहत्तर हजार योजन (प्रदेश) में, यहाँ उत्तरदिशा में नागकुमार देवों के चालीस लाख भवन है, ऐसा कहा गया है। वे भवन ( भवनावास) बाहर से गोल है, शेष सारा वर्णन दाक्षिणात्य नागकुमारों के वर्णन (सू. १८२ - १ ) के अनुसार यावत् विचरण करते हैं (विहरंति) ( तक समझ लेना चाहिए ।) [ २ ] भूयाणंदे यत्थ नागकुमारिंदे नागकुमारराया परिवसति महिड्ढीए जाव (सु. १७७ ) भासेमाणे । से णं तत्थ चत्तालीसाए भवणावाससतसहस्साणं आहेवच्चं जाव (सु. १७७) विहरति । [२] इन्हीं (पूर्वोक्त स्थानों) में (औदीच्य ) नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज भूतानन्द निवास करता है, जो कि महर्द्धिक है, (शेष वर्णन) यावत् प्रभासित करता हुआ ('पभासमाणे ') तक (सू. १७७ के अनुसार समझ लेना चाहिए।) वहाँ वह (भूतानन्देन्द्र) चालीस लाख भवनावासों का यावत् आधिपत्य एवं अग्रेसरत्व करता हुआ विचरण करता है, तक (सारा वर्णन सू. १७७ के अनुसार समझ लेना चाहिए ।) १८४. [२] कहिणं भंते! सुवण्णकुमाराणं देवाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते! सुवण्णकुमारा देवा परिवसंति ? गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए जाव एत्थ णं सुवण्णकुमाराणं देवाणं बावत्तरं भवणावाससतसहस्सा भवंतीति मक्खातं । ते णं भवणा बाहिं वट्टा जाव पडिरूवा । तत्थ णं सुवण्णकुमाराणं देवाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता । तिसु वि लोगस्स असंखेज्जइभागे ।
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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