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द्वितीय स्थानपद]
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पण्णत्ता? कहि णं भंते! दाहिणिल्ला णागकुमारा देवा परिवसंति ?
गोयमा! जंबुद्दीवे दीवे मंदरस्स पव्वयस्स दाहिणेणं इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसयसहस्सबाहल्लाए उवरि एगं जोयणसहस्सं ओगाहेत्ता हेट्ठा वेगं वज्जेत्ता मझे अट्ठहत्तरे जोयणसयसहस्से, एत्थ णं दाहिणिल्लाणं णगकुमाराणं देवाणं चोयालीसं भवणावाससयसहस्सा भवंतीति मक्खातं।
ते णं भवणा बाहिं वट्टा अंतो चउरंसा जाव' पडिरूवा। एत्थ णं दाहिणिल्लाणं णागकुमाराणं देवाणं पज्जत्ताऽपज्जताणं ठाणा पण्णत्ता। तिसु वि लोगस्स असंखेन्जइभागे। एत्थ णं बहवे दाहिणिल्ला नागकुमारा देवा परिवसंति महिड्डीया जाव (सू. १७७) विहरंति।
[१८२-१ प्र.] भगवन्! पर्याप्त और अपर्याप्त दाक्षिणात्य नागकुमारों के स्थान कहाँ कहे गए हैं? भगवन् ! दाक्षिणात्य नागकुमार देव कहाँ निवास करते हैं ?
[१८२-१ उ.] गौतम! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में सुमेरुपर्वत के दक्षिण में, एक लाख अस्सी हजार मोटी इस रत्नप्रभापृथ्वी के ऊपर एक हजार योजन अवगाह करके और नीचे एक हजार योजन छोड़कर, मध्य में एक लाख अठहत्तर हजार योजन (प्रदेश) में, यहाँ दाक्षिणात्य नागकुमार देवों के चवालीस लाख भवन हैं, ऐसा कहा गया है।
वे भवन (भवनावास) बाहर से गोल और भीतर से चौरस है, यावत् प्रतिरूप (अतीव सुन्दर) हैं। यहाँ (इन्हीं भवनावासों में) दाक्षिणात्य पर्याप्त और अपर्याप्त नागकुमारों के स्थान कहे गए हैं।
__ (वे स्थान) तीनों अपेक्षाओं से (उपपात, समुद्घात और स्वस्थान की अपेक्षा से) लोक के असख्यात भाग में हैं, जहाँ कि बहुत-से दाक्षिणात्य नागकुमार देव निवास करते हैं, जो महर्द्धिक हैं; (इत्यादि शेष समग्र वर्णन.) यावत् विचरण करते हैं (विहरंति) तक (सू. १७७ के अनुसार समझना चाहिए।)
[२] धरणे यऽत्थ णागकुमारिदे णागकुमारराया परिवसति महिड्ढीए जाव (सु. १७८) पभासेमाणे। से णं तत्थ चोयालीसाए भवणावाससयसहस्साणं छण्हं सामाणियसाहस्सीणं तायत्तीसाए तायत्तीसगाणं चउण्हं लोगपालाणं पंचण्हं अग्गमहिसीणं सपरिवाराणं तिण्हं परिसाणं सत्तण्हं अणियाणं सत्तण्हं अणियाधिवतीणं चउव्वीसाए आयरक्खदेवसाहस्सीणं अण्णेसिं च बहूणं दाहिणिल्लाणं नागकुमाराणं देवाण य देवीण य आहेवच्चं पोरेवच्चं कुब्वमाणे विहरति।
_ [१८२-२] इन्हीं (पूर्वोक्त स्थानों) में नागकुमारेन्द्र नागकुमारराज धरणेन्द्र निवास करता है, जो कि महर्द्धिक है, (इत्यादि समग्र वर्णन) यावत् प्रभासित करता हुआ ('पभासमाणे') तक (सू. १७८२ के अनुसार समझना चाहिए।)
वहाँ वह (धरणेन्द्र) चवालीस लाख भवनावासों का, छह हजार सामानिकों का, तेतीस त्रायस्त्रिंशक १. 'जाव' शब्द से तत्स्थानीय समग्र वर्णन सू. १७७ के अनुसार समझना चाहिए।