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[ प्रज्ञापना सूत्र
पण्णरससु कम्मभूमीसु तीसाए अकम्मभूमीसु छप्पण्णाए अंतरदीवेसु, एत्थ णं मणुस्साणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ।
उववाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, समुग्धाएणं सव्वलोए, सट्टाणेणं लोयस्स असंखेज्जइभागे । [१७६ प्र.] भगवन्! पर्याप्त और अपर्याप्त मनुष्यों के स्थान कहाँ ( - कहाँ) कहे गए हैं ?
[ १७६ उ.] गौतम! मनुष्यक्षेत्र के अन्दर पैंतालीस लाख योजनों में, ढाई द्वीप - समुद्रों में, पन्द्रह कर्मभूमियों में, तीस अकर्मभूमियों में और छप्पन अन्तद्वीपों में; इन स्थलों में पर्याप्त और अपर्याप्त मनुष्यों के स्थान कहे गए हैं । उपपात की अपेक्षा से (वे) लोक के असंख्यातवें भाग में, समुद्घात की अपेक्षा से सर्वलोक में हैं, और स्वस्थान की अपेक्षा से लोक के असंख्यातवें भाग में हैं ।
विवेचन - मनुष्यों के स्थानों की प्ररूपणामनुष्यों के स्थानों की प्ररूपणा की गई है।
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- प्रस्तुत सूत्र (सू. १७६) में पर्याप्तक और अपर्याप्तक
समुद्घात की अपेक्षा से सर्वलोक में समुद्घात की अपेक्षा से पर्याप्त और अपर्याप्त मनुष्य सर्वलोक में होते हैं, यह कथन केवलिसमुद्घात की अपेक्षा से सम्भव है । "
सर्व भवनवासी देवों के स्थानों की प्ररूपणा
१७७. कहि णं भंते! भवणवासीणं देवाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ? कहि णं भंते! भवणवासी देवा परिवसंति ?
गोयमा! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए असीउत्तरजोयणसतसहस्सबाहल्लाए उवरिं एगं जोयणसहस्सं ओगाहित्ता हेट्ठा वेगं जोयणसहस्सं वज्जेत्ता मज्जिमअट्टहत्तरे जोयणसतसहस्से, एत्थ भवणवासी देवाणं सत्त भवणकोडीओ बावत्तरिं च भवणावाससतसहस्सा भवंतीति मक्खातं । ते णं भवणा बाहिं वट्टा अंतो समचउरंसा अहे पुक्खरकण्णियासंठाणसंठिता उक्किण्णंतरविल गंभीरखात - परिहा पागार - ऽट्टालय-कवाड - तोरण- पडिदुवारदेसभागा जंत-सयग्धि - मुसल - मुसंढिपरियरिया अउज्झा सदाजता सदागुत्ता अडयालकोट्ठगरइया अडयालकयवणमाला खेमा सिवाकिंकरामरदंडोवरक्खिया लाउल्लोइयमहिया गोसीस - सरसरत्तचंदणदद्दरदिण्णपंचंगुलितला उवचियचंदणकलसा चंदणघडसुकततोरणपडिदुवारदेसभागा आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्घारियमल्लदामकलावा पंचवण्णसरससुरहिमुक्कपुप्फपुंजोवयारकलिया' कालागुरु-पवरकुंदुरुक्क - तुरुक्क-धूवमघ-मघेंतगंधुद्ध्याभिरामा सुगंधवरगंधगंधिया गंधवट्टिभूता अच्छरगणसंघसंविगिण्णा दिव्वतुडितसद्दसंपादिता सव्वरयणामया अच्छा सण्हा लण्हा घट्टा मट्ठा णीरया णिम्मला निप्पंका निक्कंकडच्छाया सप्पहा सस्सिरिया समरिया सउज्जोया पासादीया दरिसणिज्जा अभिरुवा पडिरुवा, एत्थ णं भवणवासीणं देवाणं पज्जत्ताऽपज्जत्ताणं ठाणा पण्णत्ता ।
१. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक ८४
२. ग्रन्थाग्रम् १०००