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बिइयं ठाणपयं
द्वितीय स्थानपद
पृथ्वीकायिकों के स्थानों का निरूपण
१४८. कहि णं भंते! बादरपुढविकाइयाणं पज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता ?
गोयमा! सट्टाणेणं असु पुढवीसु। तं जहा - रयणप्पभाए १ सक्करप्पभाए २ वालुयप्पभाए ३ पंकप्पा ४ धूमप्पभाए ५ तमप्पभाए ६ तमतमप्पभाए ७ इसीपब्भाराए ८ - १ ।
अहोलोए पायलेसु भवणेसु भवणपत्थडेसु णिरएसु निरयावलियासु निरयपत्थडेसु २ । उलो कप्पे विमासु विमाणावलियासु विमाणपत्थडेसु ३ ।
तिरियलोए टंकेसु कूडेसु सेलेसु सिहरीसु पब्भारेसु विजएसु वक्खारेसु वासेसु वासहरपव्वएसु वेलासु वेइयासु दारेसु तोरणेसु दीवेसु समुद्देसु ( ४ ) ण्क' ।
एत्थ णं बादरपुढविकाइयाणं पज्जत्तगाणं ठाणा पण्णत्ता ।
उववाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे, समुग्धाएणं लोयस्स असंखेज्जइभागे सट्ठाणेणं लोयस्स असंखेज्जइभागे ।
[१४८ प्र.] भगवन् ! बादरपृथ्वीकायिक पर्याप्तक जीवों के स्थान कहाँ कहे हैं ?
[१४८ उ.] गौतम! स्वस्थान की अपेक्षा से वे आठ पृथ्वियों में हैं । वे इस प्रकार – (१) रत्नप्रभा में, (२) शर्कराप्रभा में, (३) वालुकाप्रभा में, (४) पंकप्रभा में, (५) धूमप्रभा में, (६) तम:प्रभा में, (७) तमस्तमःप्रभा में और ( ८ ) ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी में ।
१. अधोलोक में — पातालों में, भवनों में, भवनों के प्रस्तटों (पाथड़ों) में, नरकों में, नरकावलियों में एवं नरक के प्रस्तटों (पाथड़ों) में ।
२. ऊर्ध्वलोक में—कल्पों में विमानों में, विमानावलियों में और विमान के प्रस्तटों (पाथड़ों) में।
३. तिर्यक्लोक में—टंकों में, कूटों में, शैलों में, शिखर वाले पर्वतों में, प्राग्भारों (कुछ झुके हुए पर्वतों) में, विजयों में, वक्षस्कार पर्वतों में, (भारतवर्ष आदि) वर्षों (क्षेत्रों) में, (हिमवान् आदि) वर्षधरपर्वतों में, वेलाओं (समुद्रतटवर्ती ज्वारभूमियों) में, वेदिकाओं में, द्वारों में, तोरणों में, द्वीपों में और समुद्रों में ।
इन (उपर्युक्त भूमियों) में बादरपृथ्वीकायिक पर्याप्तकों के स्थान कहे गए हैं ।
उपपात की अपेक्षा से (वे) लोक के असंख्यातवें भाग में, समुद्घात की अपेक्षा से (वे) लोक के असंख्यतवें भाग में और स्वस्थान की अपेक्षा से (भी) लोक के असंख्यातवें भाग में हैं ।
१. 'एक' चार संख्या का द्योतक है।