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[प्रज्ञापना सूत्र १३७. से किं तं सुहुमसंपरायचरित्तारिया ?
सुहमसंपरायचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता। तं जहा—संकिलिस्समाणसुहुमसंपरायचरित्तारिया य विसुज्झमाणसुहमसंपरायचरित्तारिया य। से त्तं सुहमसंपरायचरित्तारिया। ___ [१३७ प्र.] सूक्ष्मसम्पराय-चारित्रार्य कौन हैं ?
[१३७ उ.] सूक्ष्मसम्पराय-चारित्रार्य दो प्रकार के हैं—संक्लिश्यमान-सूक्ष्मसम्पराय-चारित्रार्य और विशुद्धयमान-सूक्ष्मसम्पराय-चरित्रार्य।
यह हुआ उक्त सूक्ष्मसम्पराय-चारित्रार्यों का निरूपण। १३८. से किं तं अहक्खायचरित्तारिया ?
अहक्खायचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता। तं जहा-छउमत्थअहक्खायचरित्तारिया य के वलिअहक्खायचरित्तारिया। से तं अहक्खायचरित्तारिया। से त्तं चरित्तारिया। से तं अणिडिपत्तारिया। से तं आरिया। से त्तं कम्मभूमगा। से त्तं गब्भवक्कंतिया। से तं मणुस्सा।
[१३८ प्र.] यथाख्यात-चारित्रार्थ किस प्रकार के हैं ? ।
[१३८प्र.] यथाख्यात-चारित्रार्थ दो प्रकार के कहे गये हैं—छद्मस्थयथातख्यात-चारित्रार्य और केवलियथाख्यात-चारित्रार्य। यह हुआ यथाख्यात-चारित्रार्यों का (निरूपण।) (इसके पूर्ण होने के साथ ही) चारित्रार्य का वर्णन। (समाप्त हुआ।)। इस प्रकार आर्यों का वर्णन, कर्मभूमिजों का वर्णन तथा उक्त गर्भजों के वर्णन के समाप्त होने के साथ ही मनुष्यों की प्ररूपणा पूर्ण हुई।
_ विवेचन– समग्र मनुष्यजीवों की प्रज्ञापना—प्रस्तुत ४७ सूत्रों (सू. ९२ से १३८ तक) में मनुष्यों के सम्मूछिम और गर्भज इन दो भेदों का उल्लेख करके गर्भजों के कर्मभूमक, अकर्मभूमक और अन्तरद्वीपज, यों तीन भेद और फिर इनके भेदों-प्रभेदों का निरूपण किया गया है।
कर्मभूमक और अकर्मभूमक की व्याख्या-कर्मभूमक- प्रस्तुत में कृषि-वाणिज्यादि जीवननिर्वाह के कार्यों तथा मोक्ष सम्बन्धी अनुष्ठान को कर्म कहा गया है जिनकी कर्मप्रधान भूमि हैं, वे 'कर्मभूम' या 'कर्मभूमक' कहलाते हैं। अर्थात्- कर्मप्रधान भूमि में रहने और उत्पन्न होने वाले मनुष्य कर्मभूमक हैं। अकर्मभूमक-जिन मनुष्यों की भूमि पूर्वोक्त कर्मों से रहित हो, जो कल्पवृक्षों से ही अपना जीवन निर्वाह करते हों, वे अकर्मभूम या अकर्मभूमक कहलाते हैं।
'अन्तरद्वीपक मनुष्यों की व्याख्या– अन्तर शब्द मध्यवाचक है। अन्तर में अर्थात्-लवणसमुद्र में जो द्वीप है वे अन्तरद्वीप कहलाते हैं। उन अन्तरद्वीपों में रहने वाले अन्तरद्वीपग या अन्तरद्वीपक कहलाते हैं। ये अन्तरद्वीपग मनुष्य अट्ठाईस प्रकार के हैं, जिनका मूल पाठ में नामोल्लेख है।
अन्तरद्वीप मनुष्य वज्रऋषभनाराचसंहनन वाले, कंकपक्षी के समान परिणमनवाले अनुकूल वायुवेग
१. प्रज्ञापनसूत्र मलय, वृत्ति, पत्रांक ५०