SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 210
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रथम प्रज्ञापनापद ] [ १०९ वीतरागचारित्रार्य; अथवा चरमसमय- अयोगिकेवलि - क्षीणकषाय- वीतरागचारित्रार्य और अचरमसमयअयोगिकेवलि-क्षीणकषाय- वीतरागचारित्रार्य । इस प्रकार अयोगिकेवलि-क्षीणकषाय- वीतरागचारित्रार्यों का, साथ ही केवलिक्षीणकषाय- वीतरागचारित्रार्यों का वर्णन ( भी पूर्ण हुआ); ( और इसके पूर्ण होने के साथ ही) वीतराग - चारित्रार्यों की प्ररूपणा ( भी पूर्ण हुई) । १३३. अहवा चरित्तारिया पंचविहा पन्नत्ता । तं जहा — सामाइयचरित्तारिया १ छेदोवट्ठावणियचरित्तारिया २ परिहारविसुद्धियचरित्तारिया ३ सुहुमसंपरायचरित्तारिया ४ अहक्खायचरित्तारिया ५ । [१३३] अथवा — प्रकारान्तर से चारित्रार्थ पांच प्रकार के कहे गए हैं, यथा—१. सामायिकचारित्रार्य, २. छेदोपस्थापनिक - चारित्रार्य, ३. परिहारविशुद्धिक- चारित्रार्य, ४. सूक्ष्मसम्पराय चारित्रार्य और ५. यथाख्यात - चारित्रार्य । १३४. से किं तं सामाइयचरित्तारिया ? सामाइयचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता । तं जहा — इत्तरियसामाइयचरित्तारिया य आवकहियसामाइयचरित्तारिया य से त्तं सामाइयचरित्तारिया । [१३४ प्र.] वे (पूर्वोक्त) सामायिक - चारित्रार्य किस प्रकार के हैं ? [१३४ उ.] सामायिक चारित्रार्य दो प्रकार के हैं — इत्वरिक सामायिक - चारित्रार्य और यावत्कथित् सामायिक-चारित्रार्य । यह हुआ सामायिक चारित्रार्य का निरूपण । १३५. से किं तं छेदोवट्ठावणियचरित्तारिया ? छेदोवट्ठावणियचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता । तं जहा — साइयारछेदोवट्ठावणियचरित्तारिया य णिरइयारछेदोवद्वावणियचरित्तारिया य से त्तं छेदोवट्ठावणियचरित्तारिया । [१३५ प्र.] छेदोपस्थापनिक - चारित्रार्य किस प्रकार के हैं? [१३५ उ. ] छेदोपस्थापनिक - चारित्रार्य दो प्रकार के कहे गए हैं— सातिचार-छेदोपस्थापनिकचारित्रार्य और निरतिचार - छेदोपस्थापनिक - चारित्रार्य । यह हुआ छेदोपस्थापनिक चारित्रार्यों का वर्णन । १३६. से किं तं परिहारविसुद्धियचरित्तारिया ? परिहारविसुद्धियचरित्तारिया दुविहा पण्णत्ता । तं जहा - निव्विसमाणपरिहारविसुद्धियचरित्तारिया य निव्विट्ठ काइयपरिहारविसुद्धियचरित्तारिया य से त्तं परिहारविसुद्धियचरित्तारिया । [१३६ प्र.] परिहारविशुद्धि चारित्रार्य किस प्रकार के हैं ? [१३६ उ. ] परिहारविशुद्धि चारित्रार्य दो प्रकार के कहे गए हैं— निर्विश्यमानक- परिहार- विशुद्धिचारित्रार्य और निर्विष्टकायिक- परिहारविशुद्धि चारित्रार्य । यह हुआ उक्त परिहारविशुद्धि चारित्रार्यों का वर्णन ।
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy