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________________ सम्पादकीय [ प्रथम संस्करण से ] नामकरण 'पण्णवण्णा' अथवा 'प्रज्ञापना', १ जैन आगमसाहित्य का चतुर्थ उपांग है । प्रस्तुत उपांग के संकलयिता श्री श्यामाचार्य ने इसका नाम 'अध्ययन' दिया है, जो इसका सामान्य नाम है, इसका विशिष्ट और प्रचलित नाम 'प्रज्ञापना' है। आचार्यश्री ने स्वयं 'प्रज्ञापना' का परिचय देते हुए कहा है- चूंकि भगवान् महावीर ने सर्वभावों की प्रज्ञापना (प्ररूपणा ) उपदिष्ट की है; उसी प्रकार मैं भी (प्रज्ञापना) करने वाला हूँ। अतएव इसका विशेष नाम प्रज्ञापना है । 'उत्तराध्ययनसूत्र' की भांति प्रस्तुत आगम का पूर्ण और सार्थक नाम भी 'प्रज्ञापनाध्ययन' हो सकता है । प्रज्ञापना - शब्द का उल्लेख श्रमण भगवान् महावीर द्वारा दी गई देशनाओं का वास्तविक नाम 'पन्नवेति', परूवेति' आदि क्रियाओं के आधार पर 'प्रज्ञापना' या 'प्ररूपणा ' है । उन्हीं देशनाओं का आधार लेकर प्रस्तुत उपांग की रचना होने से इसका नाम 'प्रज्ञापना ४ रखा हो, ऐसा ज्ञात होता है। इसके अतिरिक्त इसी उपांग में तथा अन्य अंगशास्त्रों में यत्र-तत्र प्रश्नोत्तरों में, अतिदेश में, तथा संवादों में 'पण्णत्ते, पण्णत्तं पण्णत्ता " आदि शब्दों का अ स्थलों पर प्रयोग हुआ है । भगवतीसूत्र में आर्यस्कन्धक के प्रश्नों का समाधान करते हुए स्वयं भगवान् महावीर ने कहा है- एवं खलु मए खंधया ! इन सब पर से भगवान महावीर के उपदेशों के लिए 'प्रज्ञापना' शब्द का प्रयोग स्पष्टतः परिलक्षित होता है । प्रज्ञापना की महत्ता और विशेषता सम्पूर्ण जैन- आगमसाहित्य में जो स्थान पंचम अंगशास्त्र - भगवती व्याख्याप्रज्ञप्ति का है, वही उपांगशास्त्रों १. 'नन्दीसूत्र' अंगवाह्यसूची २. अज्झयणमिणं चित्तं - प्रज्ञापना. गा. ३ ३. उवदंसिया भगवया पण्णवणा सव्वभावाणं. जह वण्णियं भगवया अहमवि तह वण्णइस्सामि ॥ - प्रज्ञापना, गाथा २-३ (ख) भगवती. श. १६. उ. ६ ४. (क) प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति पत्र १ ५. यथा - 'कति णं भंते! किरियाओ पण्णत्ताओं' 1- प्रज्ञापना पद २२, सू. १५६७ इत्यादि सूत्रों में यत्रतत्र 'पण्णत्ते, पण्णत्तं या पण्णत्ता - पण्णत्ताओ' पद मिलते हैं। ६. भगवतीसूत्र २ । १ । ९० [१८]
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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