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________________ ६८ [प्रज्ञापना सूत्र (नामक वनस्पति) ये प्रत्येकजीवाश्रित हैं। अन्य जो भी इस प्रकार की वनस्पतियां हैं, (उन्हें प्रत्येकजीव वाली समझो) ॥८९॥ पद्म, उप्पल, नलिन, सुभग, सौगन्धिक, अरविन्द, कोकनद, शतपत्र और सहस्रपत्रकमलों के वृत्त (डंठल), बाहर के पत्ते और कर्णिका, ये सब एकजीवरूप हैं। इनके भीतरी पत्ते, केसर और मिंजा (अर्थात्-फल) भी प्रत्येक जीव वाले होते हैं ॥९०-९१ ॥ वेणु (बांस), नल (नड), इक्षुवाटिक, समासेक्षु, और इक्कड़, रंड, करकर, सुंठी (सोंठ), विहुंगु (विहंगु) एवं दूब आदि तृणों तथा पर्व (पोरगांठ) वाली वनस्पतियों के जो अक्षि, पर्व तथा बलिमोटक (गांठों को परिवेष्टन करने वाला चक्राकार भाग) हों, वे सब एकजीवात्मक हैं। इनके पत्र (पत्ते) प्रत्येकजीवात्मक होते हैं, और इनके पुष्प अनेकजीवात्मक होते हैं ॥९२-९३ ॥ पुष्यफल, कालिंग, तुम्ब, त्रपुष, एलवालुस (चिर्भट-चीभड़ा-ककड़ी), वालुक (चिर्भट-ककड़ी), तथा घोषाटक (घोषातक), पटोल, तिन्दूक, तिन्दूस फल इनके सब पत्ते प्रत्येक जीव से (पृथक्-पृथक्) अधिष्ठित होते हैं तथा वृन्त (डंठल) गुद्दा और गिर (कटाह) के सहित तथा केसर (जटा) सहित या अकेसर (जटारहित) मिंजा (बीज), ये, सब एक-एक जीव से अधिष्ठित होते हैं ॥९४-९५ ॥ सप्फाक, सद्यात (सध्यात), उव्वेहलिया और कुहण तथा कन्दक्य ये सब वनस्पतियां अनन्तजीवात्मक होती हैं, किन्तु कन्दुक्य वनस्पति में भजना (विकल्प) है, (अर्थात्-कोई कन्दुक्य अनन्तजीवात्मक और कोई असंख्यातजीवात्मक होती है।॥ ९६॥ . [९] जोणिब्भूए बीए जीवो वक्कमई सो व अण्णो वा। जो वि य मूले जीवो सो वि य पत्ते पढमताए॥९७॥ सव्वो वि किसलओ खलु उग्गममाणो अणंतओ भणिओ। सो चेव विवड्ढंतो होई परित्तो अणंतो वा ॥ ९८॥ [५४-९] योनिभूत बीज में जीव उत्पन्न होता है, वह जीव वही (पहले वाला बीज का जीव हो सकता है,) अथवा अन्य कोई जीव (भी वहाँ आकर उत्पन्न हो सकता है।) जो जीव मूल (रूप) में (परिणत) होता है, वह जीव प्रथम पत्र के रूप में भी (परिणत होता) है। (अतः मूल और वह प्रथमपत्र दोनों एकजीवकर्तृक भी होते हैं।) ॥ ९७॥ सभी किसलय (कोंपल) ऊगता हुआ अवश्य ही अनन्तकाय कहा गया है। वही (किसलयरूप अनन्तकायिक) वृद्धि पाता हुआ प्रत्येक शरीर या अनन्तकायिक हो जाता है॥ ९८॥ [१०] समयं वकंताणं समयं तेसिं सरीरनिव्वती। समयं आणुग्गहणं समयं ऊसास-नीसासे ॥ ९९॥ एक्कस्स उ जं गहणं बहुण साहारणाण तं चेव। जं बहु याणं गहणं समासओ तं पि एगस्स ॥ १००॥ साहारणमाहारो साहारणमाणुपाणगहणं च । साहारणजीवाणं साहारणलक्खणं एयं ॥ १०१॥
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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