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प्रथम प्रज्ञापनापद ]
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[८] पुप्फा जलया थलया य वेंटबद्धा य णालबद्धा य । संखेज्जमसंखेज्जा बोधव्वाऽणंतजीवा य ॥ ८६ ॥ जेई नालियाबद्धा पुप्फा संखेज्जजीविया भणिता । णिहुया अनंतजीवा, जे यावऽण्णे तहाविहा ॥ ८७ ॥ पउमुप्पलिणीकंदे अंतरकंदे तहेव झिल्ली य । एते अनंतजीवा एगो जीवो भिस- मुणाले ॥ ८८ ॥ पलंडू - ल्हसणकंदे य कंदली य कुसुंबए । एए परित्तजीवा जे यावऽण्णे तहाविहा ॥ ८९ ॥ पउमुप्पल-नलिणाणं सुभग-सोगंधियाण य । अरविंद - कोकणाणं सतवत्त- सहस्सवत्ताणं ॥ ९० ॥ वेंट बाहिरपत्ता य कण्णिया चेव एगजीवस्स । अभितरगा पत्ता पत्तेयं केयरा मिंजा ॥ ९१ ॥ वेणु णल इक्खुवाडियसमासइखू य इक्कडेरंडे । करकर सुंठि विहंगुं तणाण तह पव्वगाणं च ॥ ९२ ॥ अच्छि पव्वं बलिमोडओ ए एगस्स होंति जीवस्स । पत्तेयं पत्ताइं पुप्फाईं अणेगजीवाई ॥९३॥ पुस्सफलं कलिंगं तुंबं तउसेलवालु वालुंकं । घोसाडगं पडोलं तिंदूयं चेव तेंदूसं ॥९४॥ विंटं गिरं कडाहं एयाहं होंति एगजीवस्स । पत्तेयं पत्ताई सकेसरमकेसरं मिंजा सफाए सज्जाए उव्वेहलिया य कुहण कंदुक्के । एए अनंतजीवा कंडुक्के होति भयणा उ ॥ ९६ ॥
॥ ९५ ॥
[५४-८] पुष्प जलज ( जल में उत्पन्न होने वाले) और स्थलज हों, वृन्तबद्ध हों या नालबद्ध, संख्यात जीवों वाले, असंख्यात जीवों वाले और कोई-कोई अनन्त जीवों वाले समझने चाहिए ॥ ८६ ॥ जो कोई नालिकाबद्ध पुष्प हों, वे संख्यात जीव वाले कहे गए हैं। थूहर (स्निहका) के फूल अनन्त जीवों वाले हैं। इसी प्रकार के ( थूहर के फूलों के सदृश ) जो अन्य फूल हों, ( उन्हें भी अनन्त जीवों वाले समझने चाहिए ।) ॥८७॥ पद्मकन्द, उत्पलिनीकन्द और अन्तरकन्द, इसी प्रकार झिल्ली (नामक वनस्पति), ये सब अनन्त जीवों वाले हैं, किन्तु ( इनके) भिस और मृणाल में एक-एक जीव है ॥ ८८ ॥ पलाण्डुकन्द (प्याज), लहसुनकन्द, कन्दली नामक कन्द और कुसुम्बक ( कुस्तुम्बक या कुटुम्बक )