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________________ [प्रज्ञापना सूत्र वंसे वेलू कणए कंकावंसे य वाववंसे य। उदए कुडए विमएकंडावेलू य कल्लाणे॥ ३४॥ ये यावऽण्णे तहप्पगारा। से तं पव्वगा। [४६ प्र.] वे पर्वक (वनस्पतियाँ) किस प्रकार की हैं ? [४६ उ.] पर्वक वनस्पतियाँ अनेक प्रकार की कही गई हैं। वे इस प्रकार हैं [गाथार्थ –] इक्षु और इक्षुवाटी, वीरण [वीरुणी] तथा एक्कड, भमास [माष], सूंठ (सुम्ब) शर और वेत्र) (बेंत), तिमिर, शतपर्वक और नल ॥ ३३ ॥ वंश (बांस), वेलू (वेच्छू), कनक, कंकावंश और चापवंश, उदक, कुटज, विमक (विसक), कण्डा, वेलू (वेल्ल) और कल्याण ॥ ३४॥ _ और भी जो इसी प्रकार की वनस्पतियाँ हैं, (उन्हें पर्वक में ही समझनी चाहिए।) यह हुई, उन पर्वकों की प्ररूपणा। ४७. से किं तं तणा? तणा अणेगविहा पण्णता। तं जहा - सेडिय भत्तिय होत्तिय डब्भ कुसे पव्वए य पोडइला। अज्जुण असाढए रोहियंसे सुयवेय खीरतुसे ॥ ३५॥ एरंडे कुरंविंदे कक्खड५ सुंठे तहा विभंगू य। महुरतण लुणय सिप्पिय बोधव्वे सुंकलितणा य॥ ३६॥ ये यावऽण्णे तहप्पगारा। से त्त तणा। [४७ प्र.] वे (पूर्वोक्त) तृण कितने प्रकार के हैं ? . [४७ उ.] तृण अनेक प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार हैं [गाथार्थ-] सेटिक (सेंडिक), भक्तिक, (मांत्रिक), होत्रिक, दर्भ, कुश और पर्वक, पोटकिला, (पाटकिला-पोटलिका), अर्जुन, आषाढक, रोहितांश, शुकदेव और क्षीरतुष (क्षीरभुसा) ॥ ३५ ॥ एरण्ड कुरुविन्द, कक्षट (करकर), सूंठ (मुट्ठ), विभंगू और मधुरतृण, लवणक, (क्षुरक), शिल्पिक (शुक्तिक) और संकुलीतृण(सुकलीवृण), (इन्हें) तृण जानना चाहिए॥ ३६॥ जो अन्य इसी प्रकार के हैं (उन्हें भी तृण समझना चाहिए। यह हुई उन (पूर्वकथित) तृणों की प्ररूपणा। ४८. से किं तं वलया ? वलया अणेगविहा पण्णत्ता। तं जहा ताल तमाले तक्कलि तेयलिप सारे य सारकल्लाणे। सरले जावति केयइ कदली तह धम्मरुक्खे य॥ ३७॥ पाठान्तर- १. मंतिय। २. खीरभुसे। ३. कस्कर। ४. वेच्छू। ५. विसए, कंडावेल्ले। ६. तोयली साली य सारकत्ताणे। ७. कयली तह चम्मरुक्खे य।
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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