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प्रथम प्रज्ञापनापद ]
मिट्टी), (४) हारिद्रमृत्तिका (पीली मिट्टी), (५) शुक्लमृत्तिका (सफेद मिट्टी), (६) पाण्डुमृत्तिका (पाण्डु — मटमैले रंग की मिट्टी) और (७) पनकमृत्तिका (काई - सी हरे रंग की मिट्टी) । २४. से किं तं खरबादरपुढविकाइया ?
खरबादरपुढविकाइया अणेगविहा पण्णत्ता । तं जहा
पुढवी य १ सक्करा २ वालुया य ३ उवले ४ सिला य ५ लोणूसे ६-७ । अय ८ तंब ९ तय १० सीसय ११ रुप्प १२ सुवण्णे य १३ वइरे य १४॥ ८ ॥ हरियाले १५ हिंगुलुए १६ मणोसिला १७ सासगंजण १८-१९ पवाले २० । अब्भपडल २१ ऽब्भवालुय २२ बादरकाए मणिविहाणा ॥ ९ ॥
१ गोमेज्जए य २३ रुपए २४ अंके २५ फलिहे य २५ लोहियक्खे य २७ । मरगय २८ मसारगल्ले २० भुयमोयग २० इंदनीले य ३१ ॥ १० ॥ चंदण ३२ गेरुय ३३ हंसे ३४ पुलए ३५ सोगंधिए य ३६ बोद्धव्वे । चंदप्पभ ३७ वेरुलिए ३८ जलकंते ३९ सूरकंते य ४० ॥ ११ ॥
जे यावऽण्णे तहय्पगारा ।
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[२४-प्र.] खर बादरपृथ्वीकायिक कितने प्रकार के हैं ?
[२४-उ.] खर बादरपृथ्वीकायिक अनेक प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार - (१) पृथ्वी, (२) शर्करा (कंकर), (३) बालुका (बालु-रेत), (४) उपल ( पाषाण - पत्थर), (५) शिला (चट्टान), (६) लवण (सामुद्र, सैंचल आदि नमक), (७) ऊष (ऊषर — क्षार वाली जमीन, बंजर भूमि), (८) अयस् (लोहा), (९) ताम्बा, (१०) त्रपुष् (रांगा ), (११) सीसा, (१२) रौप्य (चांदी), (१३) सुवर्ण (सोना), (१४) वज्र (हीरा), (१५) हड़ताल, (१६) हींगलू (१७) मैनसिल, (१८) सासग (पारद— पारा), (१९) अंजन (सौवीर आदि), (२०) प्रवाल (मूंगा), (२१) अभ्रपटल (अभ्रक - भोडल), (२२) अभ्रबालुका (अभ्रक - मिश्रित बालू), बादरकाय में मणियों के प्रकार — (२३) गोमेज्जक (गोमेदरत्त्र), (२४) रुचकरत्न, (२५) अंकरत्न, (२६) स्फटिकरत्न, (२७) लोहिताक्षरत्न, (२८) मरकतरत्न, (२९) मसारगल्लरत्न, (३०) भुजमोचकरल, (३१) इन्द्रनीलमणि, (३२) चन्दनरत्न, (३३) गैरिकरत्न, (३४) हंसरत्न (हंसगर्भरत्न), (३५) पुलकरत्न, (३६) सौगन्धिकरत्न, (३७) चन्द्रप्रभरल, (३८) वैडूर्यरन, (३९) जलकान्तमणि और (४०) सूर्यकान्तमणि ॥ ८- ९-१०-११॥
१. गोमेजए य २३ रुयगे २४ अंके २५ फलिहे य २६ लोहियक्खे य २७ । चंदण २८ गेरुय २९ हंसग ३० भुयमोय ३१ मसारगल्ले य ३२ ।। ७५ ।। चंदप्पह ३३ वेरुलिए ३३ जलकंते ३५ चेव सूरकंते य ३७ । एए खरपुढवीए नामं छत्तीसयं होइ ॥ ७३ ॥
इस प्रकार आचारांग वृत्तिकार शीलांकाचार्य ने आचारागनिर्युक्ति की गाथाओं द्वारा खरपृथ्वीकाय के ३६ भेद गिनाए हैं, जबकि प्रज्ञापना में ४० भेद वर्णित हैं। उत्तराध्ययन सूत्र में प्रज्ञापना के समान ही गाथाएँ हैं। सं.
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