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प्रथम प्रज्ञापनापद]
स्पर्शन, रसन और घ्राणेन्द्रिय हों, वे त्रीन्द्रिय कहलाते हैं। जैसे-जूं, खटमल, चींटी आदि। (४) चतुरिन्द्रिय—जिन जीवों के स्पर्शन, रसन, घ्राण और चक्षुरिन्द्रिय हो वे चतुरिन्द्रिय कहलाते हैं। जैसेटिड्डी, पतंगा, मक्खी, मच्छर आदि। (५) पंचेन्द्रिय-जिनके स्पर्शन, रसन, घ्राण, चक्षु और श्रोत्र, ये पांचों इन्द्रियां हों, वे पंचेन्द्रिय कहलाते हैं जैसे—नारक, तिर्यञ्च (मत्स्य, गाय, हंस, सर्प), मनुष्य और देव। इन्द्रियां दो प्रकार की हैं—द्रव्येन्द्रिय और भावेन्द्रिय। द्रव्येन्द्रिय के दो रूप-निर्वृत्तिरूप और उपकरणरूप। इन्द्रियों की रचना को निर्वृत्ति-इन्द्रिय कहते हैं और निर्वृत्ति-इन्द्रिय की शक्तिविशेष को उपकरणेन्द्रिय कहते हैं। भावेन्द्रिय लब्धि (क्षयोपशम) तथा उपयोग रूप है। एकेन्द्रिय जीवों में भी क्षयोपशम एवं उपयोगरूप भावेन्द्रिय पांचों ही सम्भव हैं; क्योंकि उनमें से कई एकेन्द्रिय जीवों में उनका कार्य दिखाई देता है। जैसे—जीवविज्ञानविशेषज्ञ डॉ. जगदीशचन्द्र बोस ने एकेन्द्रिय वनस्पति में भी निन्दा-प्रशंसा आदि भावों को समझने की शक्ति (लब्धि = क्षयोपशम) सिद्ध करके बताई है। एकेन्द्रिय संसारी जीवों की प्रज्ञापना
१९. से किं तं एगेंदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा ? — एगेंदियसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा पंचविहा पण्णत्ता। तं जहा-पुढविकाइया १ आउकाइया २ तेउकाइया ३ वाउकाइया ४ वणस्सइकाइया ५।
[१९ प्र.] वह (पूर्वोक्त) एकेन्द्रिय-संसारसमापन्नजीव-प्रज्ञापना क्या है ?
[१९ उ.] एकेन्द्रिय-संसारसमापन्नजीव-प्रज्ञापना पांच प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार है—१. पृथ्वीकायिक, २. अप्कायिक, ३. तेजस्कायिक, ४. वायुकायिक और ५. वनस्पतिकायिक।
विवेचन—एकेन्द्रियसंसारी जीवों की प्रज्ञापना-प्रस्तुत सूत्र में पृथ्वीकायिक आदि पांच प्रकार के एकेन्द्रियजीवों की प्ररूपणा की गई है।
एकेन्द्रिय जीवों के प्रकार और लक्षण- (१) पृथ्वीकायिक-पृथ्वी ही जिनका कायशरीर है, वे पृथ्वीकाय या पृथ्वीकायिक कहलाते हैं। (२) अप्कायिक-अप–प्रसिद्ध जल ही जिनका काय—शरीर है, वे अप्काय या अप्कायिक कहलाते हैं। (३) तेजस्कायिक-तेज यानी अग्नि ही जिनका काय—शरीर है, वे तेजस्काय या तेजस्कायिक कहलाते हैं। (४) वायुकायिक-वायु—हवा ही जिनका काय—शरीर है; वे वायुकाय या वायुकायिक हैं। (५) वनस्पतिकायिक लतादिरूप वनस्पति ही जिनका शरीर (काय) है, वे वनस्पतिकाय या वनस्पतिकायिक कहलाते हैं।
पृथ्वी समस्त प्राणियों की आधारभूत होने से सर्वप्रथम पृथ्वीकायिकों का ग्रहण किया गया। अप्कायिक पृथ्वी के आश्रित हैं, इसलिए तदनन्तर अप्कायिकों का ग्रहण किया गया। तत्पश्चात् उनके प्रतिपक्षी
१. प्रज्ञापना. मलय. वृत्ति, पत्रांक २३-२४