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________________ [प्रज्ञापना सूत्र (१) जो पांच वर्षों में से किसी भी एक वर्ण के रूप में परिणत हैं, वे ही यदि दो गन्ध, पांच रस, आठ स्पर्श एवं पांच संस्थानों में से किसी एक के स्वरूप में परिणत हों तो पांचों वर्गों के २० + २० + २० + २० + २० = १०० भंग हो जाते हैं। (२) दो गन्धों में प्रत्येक के रूप में परिणत पुद्गल, यदि पांच वर्ण, पांच रस, आठ स्पर्श और पांच संस्थानों की अपेक्षा से परिणत हों तो उन दोनों गन्धों के २३ + २३ = ४६ भंग हो जाते हैं। __ (३) पाँच रसों में से प्रत्येक के रूप में परिणत पुद्गल, यदि पांच वर्ण, दो गन्ध, आठ स्पर्श और पांच संस्थानों के रूप से परिणत हों तो उन पांचों के २०+२०+२०+२०+२० = १०० भंग हो जाते हैं। (४) आठ स्पर्शों में से प्रत्येक के रूप में परिणत पुद्गल यदि पांच वर्ण, दो गन्ध, पांच रस, छह स्पर्श (प्रतिपक्षी और स्व स्पर्श को छोड़कर) तथा पांच संस्थानों के रूप से परिणत हों, तो उनके २३+२३+२३+२३+२३+२३+२३+२३ = १८४ भंग हो जाते हैं। (५) पांच संस्थानों में से प्रत्येक के रूप में परिणत पुद्गल, यदि पांच वर्ण, दो गन्ध, पांच रस तथा आठ स्पर्शों के रूप से परिणत हों तो उनके २०+२०+२०+२०+२०+ = १०० भंग होते हैं। इस प्रकार वर्णादि पांचों के पारस्परिक सम्बन्ध की अपेक्षा से १००+४६+१००+१८४+१०० = कुल ५३० भंग (विकल्प) निष्पन्न होते हैं। ___इसे स्पष्टरूप से समझने के लिए एक उदाहरण लीजिए—मान लो, कुछ स्कन्धरूप पुद्गल काले वर्ण वाले हैं, यानी कृष्णवर्ण के रूप में परिणत हैं, उनमें से गन्ध की अपेक्षा से कोई सुगन्ध वाले होते हैं, कोई दुर्गन्ध वाले भी होते हैं। रस की अपेक्षा से—वे तिक्तरस वाले भी हो सकते हैं, कटुरस वाले भी, कषायरस वाले भी, अम्लरस वाले भी और मधुररस वाले भी होने संभव हैं। स्पर्श की दृष्टि से सोचें तो वे कर्कश आदि आठों ही स्पर्शों में से कोई न कोई किसी न किसी स्पर्श के हो सकते हैं। संस्थान की अपेक्षा से विचार किया जाए तो वे कृष्णवर्ण-परिणत पुद्गल परिमण्डल भी होते हैं, वृत्त भी, त्रिकोण भी, चतुष्कोण भी और आयत आकार के भी होते हैं। इस प्रकार एक कृष्णवर्णीय पुद्गल के साथ प्रत्येक गन्ध, रस, स्पर्श और संस्थान की अपेक्षा से २० भंग हो जाते हैं। इसी तरह. पूर्वोक्त सभी भंगों का विचार कर लेना चाहिए। विकल्पों की संख्या स्थूल दृष्टि से, सूक्ष्मदृष्टि से नहीं—यद्यपि बादरस्कन्धों में पांचों वर्ण, दोनों गन्ध पांचों रस पाए जाते हैं. अतएव अधिकत वर्ण आदि के सिवाय शेष वर्ण आ (विकल्प) हो सकते हैं, तथापि उन्हीं बादर स्कन्धों में जो व्यावहारिक दृष्टि से केवल कृष्णवर्णादि से युक्त बीच के स्कन्ध हैं, जैसे—देहस्कन्ध में ही एक नेत्रस्कन्ध काला है, तदन्तर्गत ही कोई लाल है, दूसरा अन्तर्गत ही शुक्ल है, उन्हीं की यहाँ विवक्षा की गई है। उनमें दूसरे वर्णादि संभव नहीं हैं । स्पर्श की प्ररूपणा में, प्रतिपक्षी स्पर्श को छोड़कर किसी एक स्पर्श के साथ अन्य स्पर्श भी देखे जाते हैं। अतएव यहाँ जो भंगों की संख्या बताई गई है, वह युक्तियुक्त है। किन्तु यह विकल्पसंख्या स्थूलदृष्टि
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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