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________________ प्रथम प्रज्ञापनापद] से ही समझनी चाहिए। सूक्ष्मदृष्टि से देख जाए तो तरतमता की अपेक्षा से इनमें से प्रत्येक के अनन्तअनन्त भेद होने के कारण अनन्त विकल्प हो सकते हैं। वर्णादि परिणामों का अवस्थान जघन्य एक समय और उत्कृष्ट असंख्यातकाल तक रहता है। जीवप्रज्ञापना : स्वरूप और प्रकार १४. से किं तं जीवपण्णवणा? जीवपण्णवणा दुविहा पण्णता। तं जहा–संसारसमावण्णजीवपण्णवण य १ असंसारसमावण्णजीवपण्णवणा २। [१४ प्र.] वह (पूर्वोक्त) जीवप्रज्ञापना क्या है ? [१४ उ.] जीवप्रज्ञापना दो प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार—(१) संसार-समापन्न (संसारी) जीवों की प्रज्ञापना और (२) असंसार-समापन्न (मुक्त) जीवों की प्रज्ञापना। विवेचनजीवप्रज्ञापना : स्वरूप और प्रकार—प्रस्तुत सूत्र १४ से जीवों की प्रज्ञापना प्रारम्भ होती है, जो सू. १४७ में पूर्ण होती है। इस प्रकार सूत्र में जीव-प्रज्ञापना का उपक्रम और उसके दो प्रकार बताए गए हैं। जीव की परिभाषा—जो जीते हैं, प्राणों को धारण करते हैं, वे जीव कहलाते हैं। प्राण दो प्रकार के हैं—द्रव्यप्राण और भावप्राण। द्रव्यप्राण १० है—पांच इन्द्रियां, तीन बल—मन-वचन-काय, श्वासोच्छ्वास और आयुष्यबल प्राण। भावप्राण चार हैं—ज्ञान, दर्शन, सुख और वीर्य। संसार-समापन्न समस्त जीव यथायोग्य भावप्राणों से तथा द्रव्यप्राणों से युक्त होते हैं। जो असंसारसमापन सिद्ध होते हैं. वे केवल भावप्राणों से युक्त हैं। संसारसमापन्न और असंसारसमापन की व्याख्या संसार का अर्थ है संसार-परिभ्रमण, जो कि नारक-तिर्यञ्च-मनुष्य-देवभवानुभवरूप है, उक्त संसार को जो प्राप्त हैं, वे जीव संसारसमापन्न हैं, अर्थात्संसारवर्ती जीव हैं। जो संसार—भवभ्रमण से रहित हैं, वे जीव असंसारसमापन हैं । असंसारसमापन्न-जीवप्रज्ञापना : स्वरूप और भेद-प्रभेद १५. से किं तं असंसारसमावण्णजीवपण्णवणा ? ' असंसारसमावण्णजीवपण्णवणा दुविहा पण्णत्ता। तं जहा—अणंतरसिद्धअसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा य १ परंपरसिद्धअसंसारसमावण्णजीवपण्णवणा य २ ? [१५ प्र.] वह (पूर्वोक्त) असंसारसमापन्नजीव-प्रज्ञापना क्या है ? १. प्रज्ञापना. मलय. वृत्ति, पत्रांक १२, १७-१८ २. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक ७ ३. प्रज्ञापनासूत्र मलय. वृत्ति, पत्रांक १८
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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