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________________ प्रथम प्रज्ञापनापद] १७ रूविअजीवपण्णवणा चउनिहा पण्णत्ता। तं तहा - खंधा ? खंधदेसा २ खंधप्पएसा ३ परमाणुपोग्गला ४ । [६-प्र.] वह रूपी-अजीवप्रज्ञापना क्या है ? [६-उ.] रूपी-अजीवप्रज्ञापना चार प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार -१. स्कन्ध, २. स्कन्धदेश, ३. स्कन्धप्रदेश और ४. परमाणुपुद्गल। ७. ते समासतो पंचविहा पण्णत्ता। तं जहा—वण्णपरिणया १ गंधपरिणया २ रसपरिणया ३ फासपरिणया ४ संठाणपरिणया ५ । ७. वे (चारों) संक्षेप से पांच प्रकार के कहे गए हैं, यथा—(१) वर्णपरिणत, (२) गन्धपरिणत (३) रसपरिणत, (४) स्पर्शपरिणत और (५) संस्थानपरिणत। ८. [१] जे वण्णपरिणया ते पंचविहा पण्णत्ता। तं जहा–कालवण्णपरिणया १ नीलवण्णपरिणया २ लोहियवण्णपरिणया ३ हालिद्दवण्णपरिणया ४ सुक्किलवण्णपरिणया ५। [८-१] जो वर्णपरिणत होते हैं, वे पांच प्रकार के कहे हैं,। यथा—(१) काले वर्ण के रूप में परिणत, (२) नीले वर्ण के रूप में परिणत, (३) लाल वर्ण के रूप में परिणत, (४) पीले (हारिद्र) वर्ण के रूप में परिणत, और (५) शुक्ल (श्वेत) वर्ण के रूप में परिणत । [२] जे गंधपरिणता ते दुविहा पन्नत्ता। तं जहा–सुब्भिगंधपरिणता य १ दुब्भिगंधपरिणता य२। [८-२] जो गन्धपरिणत होते हैं, वे दो प्रकार के कहे गए हैं—(१) सुगन्ध के रूप में परिणत और (२) दुर्गन्ध के रूप में परिणत । [३] जे रसपरिणता से पंचविहा पन्नत्ता। तं जहा—तित्तरसपरिणता १ कडुयरसपरिणता २ कसायरसपरिणता ३ अंबिलरसपरिणता ४ महुररसपरिणता ५ । [८-२] जो रसपरिणत होते हैं, वे पांच प्रकार के कहे गए हैं। वे इस प्रकार -(१) तिक्त (तीखे) रस के रूप में परिणत, (२) कटु (कड़वे) रस के रूप में परिणत, (३) कषाय—(कसैले) रस के रूप में परिणत, (४) अम्ल (खट्टे) रस के रूप में परिणत और (५) मधुर (मीठे) रस के रूप में परिणत। [४] जे फासपरिणता ते अट्टविहा पण्णत्ता। तं जहा–कक्खडफासपरिणता १ मउयफासपरिणता २ गरुयफासपरिणता ३ लहुयफासपरिणता ४ सीयफासपरिणता ५ उसिणफासपरिणता ६ निद्धफासपरिणता ७ लुक्खफासपरिणता ८ ।। [८-४] जो स्पर्शपरिणत होते हैं, वे आठ प्रकार के कहे गए हैं, यथा-(१) कर्कश (कठोर) स्पर्श के रूप में परिणत, (२) मृदु (कोमल) स्पर्श के रूप में परिणत, (३) गुरु (भारी) स्पर्श के रूप में परिणत, (४) लघु (हल्के) स्पर्श के रूप में परिणत, (५) शीत (ठंडे) स्पर्श के रूप में परिणत,
SR No.003456
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages572
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size12 MB
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