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________________ तृतीय प्रतिपत्ति : नंदीश्वर द्वीप की वक्तव्यता ] [६७ एवं चउद्दिसिं चत्तारि णंदापुक्खरणीओ, णवरि खोयस्स पडिपुण्णाओ जोयणसयं आयामेणं पन्नासं जोयणाई विक्खंभेणं पण्णासं जोयणाई उव्वेहे णं सेसं तं चेव। मणोगुलियाणं गोमाणसीण य अडयालीसं अडयालीसं सहस्साइं पुरच्छिमेणवि सोलह पच्चत्थिमेणवि सोलस दाहिणेणवि अठ्ठ उत्तरेणवि अठ्ठ साहस्सीओ तहेव सेसं उल्लोया भूमिभागा जाव बहुमज्झदेसभाए मणिपेढिया सोलसजोयणा आयामविक्खंभेणं अट्ठजोयणाई बाहल्लेणं तारिसं मणिपेढियाणं उप्पि देवच्छंदगा सोलसजोयणाई आयामविक्खंभेणं साइरेगाइं सोलसजोयणाई उड्ढे उच्चत्तेणं सव्वरयणामया० अठ्ठसयं जिणपडिमाणं सो चेव गमो जहेव वेमाणियसिद्धाययणस्स। १८३. (ख) उन प्रत्येक सिद्धायतनों की चारों दिशाओं में चार द्वार कहे गये हैं; उनके नाम हैंदेवद्धार, असुरद्वार, नागद्वार और सुपर्णद्वार। उनमें महर्द्धिक यावत् पल्योपम की स्थिति वाले चार देव रहते है। उनके नाम हैं-देव, असर. नाग और सपर्ण। वे द्वार सोलह योजन ऊँचे, आठ योजन चौडे, और उतने ही प्रमाण के प्रवेश वाले हैं। ये सब द्वार सफेद हैं, कनकमय इनके शिखर हैं आदि वनमाला पर्यन्त सब वर्णन विजयद्वार के समान जानना चाहिए। उन द्वारों की चारों दिशाओं में चार मुखमंडप हैं। वें मुखमंडप एक सौ योजन विस्तार वाले, पचास योजन चौड़े और सोलह योजन से कुछ अधिक ऊँचे हैं। विजयद्वार के समान वर्णन कहना चाहिए उन मुखमंडप की चारों (तीनों ) दिशाओं में चार (तीन) द्वार कहे गये हैं । वे द्वार सोलह योजन ऊँचे, आठ योजन चौड़े और आंठ योजन प्रवेश वाले हैं आदि वर्णन वनमाला पर्यन्त विजयद्वार तुल्य ही इसी तरह प्रेक्षागृहमंडपों के विषय में भी जानना चाहिए। मुखमंडपों के समान ही उनका प्रमाण है। द्वार भी उसी तरह के हैं । विशेषता यह हैं कि बहुमध्यभाग में प्रेक्षागृहमंडपों के अखाड़े, (चौक) मणिपीठिका आठ योजन प्रमाण, परिवार रहित सिंहासन यावत् मालाएं, स्तूप आदि चारों दिशाओं में उसी प्रकार कहने चाहिए। विशेषता यह है कि वे सोलह योजन से कुछ अधिक प्रमाण वाले और कुछ अधिक सोलह योजन ऊँचे हैं । शेष उसी तरह जिनप्रतिमा पर्यन्त वर्णन करना चाहिए। चारों दिशाओं में चैत्यवृक्ष हैं। उनका प्रमाण वही है जो विजया राजधानी के चैत्यवृक्षों का हैं। विशेषता यह है कि मणिपीठिका सोलह योजन प्रमाण है। उन चैत्यवृक्षों की चारों दिशाओं में चार मणिपीठिकाएं हैं जो आठ योजन चौड़ी, चार योजन मोटी हैं। उन पर चौसठ योजन ऊँची, एक योजन गहरी, एक योजन चौड़ी महेन्द्रध्वजा है। शेष पूर्ववत् । इसी तरह चारों दिशाओं में चार नंदा पुष्करिणियां हैं विशेषता यह है कि वे इक्षुरस से भरी हुई हैं। उनकी लम्बाई सौ योजन, चौड़ाई पचास योजन और गहराई पचास योजन है। शेष पूर्ववत् । उन सिद्धायतनों में प्रत्येक दिशा में-पूर्व दिशा में सोलह हजार, पश्चिम में सोलह हजार, दक्षिण में आठ हजार और उत्तर में आठ हजार-यों कुल ४८ हजार मनोगुलिकाएं (पीठिकाविशेष) हैं और इतनी
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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