SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ तृतीय प्रतिपत्ति : समयक्षेत्र (मनुष्यक्षेत्र) का वर्णन] [५३ लवों का एक मुहूर्त होता है। एक मुहूर्त में एक करोड़ सड़सठ लाख सतत्तर हजार दो सो सोलह (१,६७,७७,२१६) आवलिकाएं होती है। एक मुहूर्त में तीन हजार सात सौ तिहत्तर (३७७३) उच्छास होते हैं। तीस मुहूर्तों का एक अहोरात्र, पन्द्रह अहोरात्र का एक पक्ष, दो पक्षों का एक मास, दो मास की एक ऋतु होती है । जैनसिद्धान्तानुसार प्रावृट, वर्षा, शरद, हेमन्त, वसन्त और ग्रीष्म-ये छह ऋतुएं हैं। आषाढ और श्रावण मास प्रावृट् ऋतु हैं , भाद्रपद-आश्विन वर्षाऋतु, कार्तिक-मृगशिर शरद ऋतु, पौषमाघ हेमन्तऋतु, फाल्गुन-चैत्र वसन्तऋतु और वैशाख-ज्येष्ठ ग्रीष्मऋतु है। ___तीन ऋतुओं का एक अयन, दो अयन का एक संवत्सर (वर्ष), पांच संवत्सर का एक युग, वीस युग का सौ वर्ष। पूर्वाचार्यों ने एक अहोरात्र, एक मास और एक वर्ष में जितने उच्छ्वास होते हैं, उनका संकलन इन गाथाओं में किया है एगं च सयसहस्सं ऊसासाणं तु तेरस सहस्सा। नउयसएण अहिया दिवस-निसिं होंति विन्नेया॥१॥ मासे वि य उस्सासा लक्खा तित्तीस सहसपणनउइ। सत्त सयाइं जाणसु कहियाई पूव्वसूरीहिं ॥२॥ चत्तारि य कोडीओ लक्खा सत्तेव होंति नायव्व। अडयालीस सहस्सा चार सया होंति वरिसेणं ॥३॥ एक लाख तेरह हजार नौ सौ (१,१३,९००) उच्छ्वास एक दिन में होते हैं । तेतीस लाख पंचानवै हजार सात सौ (३३,९५,७००) उच्छ्वास एक मास में होते हैं । चार करोड़ सात लाख अडतालीस हजार चार सौ (४,०७,४८,४००) उच्छ्वास एक वर्ष में होते हैं । दस सौ वर्ष का हजार वर्ष और सौ हजार वर्ष का एक लाख वर्ष होते हैं । ८४ लाख वर्ष का एक पूर्वांग, ८४ लाख पूर्वांग का एक पूर्व होता है । ८४ लाख पूर्वो का एक त्रुटित्तांग, ८४ लाख त्रुटितांगों का एक त्रुटित; ८४ लाख त्रुटितों का एक अड्डांग, ८४ लाख अड्डांगों का एक अड्ड; ८४ लाख अड्डों का एक अववांग ८४ लाख अववांगों का एक अवव, ८४ लाख अववों का एक हूहुकांग, ८४ लाख हूहुकांगों का एक हूहुक, १."आषाढाद्या ऋतवः इतिवचनात् । ये त्वभिदधति वसन्ताद्या ऋतवः तदप्रमाणमवसातव्यम् जैनमतोत्तीर्णत्वात्।"-वृत्तिः।,
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy