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________________ ४०] [जीवाजीवाभिगमसूत्र भगवन् ! पुष्करवरद्वीप का विजयद्वार कहां है ? गौतम ! पुष्करवरद्वीप के पूर्वी पर्यन्त में और पुष्करोदसमुद्र के पूर्वार्ध के पश्चिम में पुष्करवरद्वीप का विजयद्वार है, आदि वर्णन जंबूद्वीप के विजयद्वार के समान कहना चाहिए। इसी प्रकार चारों द्वारों का वर्णन जानना चाहिए। लेकिन शीता शीतोदा नदियों का सद्भाव नहीं कहना चाहिये। भगवन् ! पुष्करवरद्वीप के एक द्वार से दुसरे द्वार का अन्तर कितना है ? गौतम ! अड़तालीस लाख बावीस हजार चार सौ उनहत्तर (४८२२४६९) योजन का अन्तर है। (चारों द्वारों की मोटाई १८ योजन है । पुष्करवरद्वीप की परिधि १९२८९८९४ योजन में से १८ योजन कम करने पर १९२८९८७६ योजन की राशि को ४ से भाग देने पर उक्त प्रमाण निकल आता है।) पुष्करवरद्वीप के प्रदेश पुष्करवरसमुद्र से स्पृष्ट हैं और वे प्रदेश उसी के हैं, इसी तरह पुष्करवरसमुद्र के प्रदेश पुष्करवरद्वीप से छुए हुए हैं और उसी के हैं । पुष्करवरद्वीप और पुष्करवरसमुद्र के जीव मरकर कोई कोई उनमें उत्पन्न होते है और कोई कोई उनमें उत्पन्न नहीं भी होते हैं। भगवन् ! पुष्करवरद्वीप पुष्करवरद्वीप क्यों कहलाता है ? गौतम ! पुष्करवरद्वीप में स्थान-स्थान पर यहां-वहां बहुत से पद्मवृक्ष, पद्मवन और पद्मवनखण्ड नित्य कुसुमित रहते हैं तथा पद्म और महापद्म वृक्षों पर पद्म और पुंडरीक नाम के पल्योपम स्थिति वाले दो महर्द्धिक देव रहते हैं, इसलिए पुष्करवरद्वीप पुष्करवरद्वीप कहलाता है यावत् नित्य है। ____ भगवन् ! पुष्करवरद्वीप में कितने चन्द्र उद्योत करते थे, करते हैं और करेंगे-इत्यादि प्रश्न करना चाहिए? गौतम ! एक सौ चवालीस चन्द्र और एक सौ चवालीस सूर्य पुष्करवरद्वीप में प्रभासित होते हुए विचरते हैं। चार हजार बत्तीस (४०३२) नक्षत्र और बारह हजार छह सौ बहत्तर (१२६७२) महाग्रह हैं। छियानवै लाख चवालीस हजार चार सौ (९६४४४००) कोडाकोडी तारागण पुष्करवरद्वीप में शोभित हुए, शोभित होते हैं और शोभित होंगे। मानुषोत्तरपर्वत की वक्तव्यता १७६. (आ) पुक्खरवरदीवस्स णं बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं माणुसुत्तरे नामं पव्वए पण्णत्ते, वट्टे वलयागारसंठाणसंठिए, जे णं पुक्खरवरदीवं दुहा विभयमाणे विभयमाणे चिट्ठइ, तं जहा-अभिंतरपुक्खरद्धं च बाहिरपुक्खरद्धं च। अभितरपुक्खरद्धे णं भंते! केवइयं चक्कवालेणं परिक्खेवेणं पण्णत्ते? गोयमा! अट्ठजोयण सयसहस्साई चक्कवालविक्खंभेणं कोडी बायालीसा तीसं दोण्णि य सया अगुणवण्णा। पुक्खर वद्धपरिरओ एवं च मणुस्सखेत्तस्स ॥१॥
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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