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________________ तृतीय प्रतिपत्ति : धातकीखण्ड की वक्तव्यता] [३३ वुच्चइ-धायइसंडे दीवे धायइसंडे दीवे। अदुत्तरं च णं गोयमा ! जाव णिच्चे। ___धायइसंडे णं दीवे कति चंदा पभासिंसु वा पभासिंति वा पभासिस्संति वा ? कइ सूरिया तविंसु वा ३। कइ महग्गहा चारं चरिंसु वा ३? कइ णक्खत्ता जोगं जोइंसु वा ३? कइ तारागणकोडाकोडीओ सोभिंसु वा ३ ? गोयमा ! बारस चंदा पभासिंसु वा ३ एवं चउवीसं ससिरविणो णक्खत्तासता य तिन्नि छत्तीसा। एगं च गह सहस्सं छप्पन्नं धायइसंडे ॥१॥ अद्वैव सयसहस्सा तिण्णि सहस्साइं सत्त य सयाई। धायइसंडे दीवे तारागण कोडिकोडीणं ॥२॥ सोभिंसु वा सोभंति वा सोभिस्संति वा। १७४. धातकीखण्ड नाम का द्वीप, जो गोल वलयाकार संस्थान से संस्थित है , लवणसमुद्र को सब ओर से घेरे हुए संस्थित है। __ भगवन् ! धातकीखण्डद्वीप समचक्रवाल संस्थान से संस्थित है या विषमचक्रवाल संस्थानसंस्थित है? .. गौतम ! धातकीखण्ड समचक्रवाल संस्थान-संस्थित है, विषमचक्रवालसंस्थित नहीं है। भगवन् ! धातकीखण्डद्वीप चक्रवाल-विष्कंभ से कितना चौड़ा है और उसकी परिधि कितनी है । गौतम ! वह चार लाख योजन चक्रवालविष्कंभ वाला और इकतालीस लाख दस हजार नौ सो इकसठ योजन से कुछ कम परिधि वाला है।' वह धातकीखण्ड एक पद्मवरवेदिका और वनखण्ड से सब ओर से घिरा हुआ है। दोनों का वर्णनक कहना चाहिए। धातकीखण्डद्वीप के समान ही उनकी परिधि है। भगवन् ? धातकीखण्ड के कितने द्वार हैं। गौतम ! धातकीखण्ड के चार द्वार हैं , यथा-विजय, वैजयंत, जयन्त और अपराजित । हे भगवन् ! धातकीखण्डद्वीप का विजयद्वार कहां पर स्थित है ? गौतम ! धातकीखण्ड के पूर्वी दिशा के अन्त में और कालोदसमुद्र के पूर्वार्ध के पश्चिमदिशा में शीता महानदी के ऊपर धातकीखण्ड का विजयद्वार है। जम्बूद्वीप के विजयद्वार की तरह ही इसका १. एयालीसं लक्खा दस य सहस्साणि जोयणाणं तु। नव य सया एगठ्ठा किंचूणो परिरओ तस्स ॥१॥
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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