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[जीवाजीवाभिगमसूत्र
गौतम! लवणसमुद्र के दोनों तरफ (जम्बूद्वीपवेदिकान्त से और लवणसमुद्रवेदिकान्त से) पंचानवैपंचानवै प्रदेश (यहां प्रदेश से प्रयोजन त्रसरेणु है) जाने पर एक प्रदेश की उद्वेध-वृद्धि (गहराई में वृद्धि) होती है , ९५-९५ बालाग्र जाने पर एक बालाग्र उद्वेध-वृद्धि होती है , ९५-९५ लिक्खा जाने पर एक लिक्खा की उद्वेध-वृद्धि होती है, ९५-९५ यवमध्य जाने पर एक यवमध्य की उद्वेध-वृद्धि होती है, इसी तरह ९५-९५ अंगुल, वितस्ति (बेंत), रत्नि (हाथ), कुक्षि, धनुष, कोस, योजन, सौ योजन, हजार योजन जाने पर एक-एक अंगुल यावत् एक हजार योजन की उद्वेध-वृद्धि होती है।
हे भगवन् ! लवणसमुद्र की उत्सेध-वृद्धि (ऊंचाई में वृद्धि) किस क्रम से होती है अर्थात् कितनी दूर जाने पर कितनी ऊंचाई में वृद्धि होती है?
हे गौतम! लवणसमुद्र के दोनों तरफ ९५-९५ प्रदेश जाने पर सोलह प्रदेश प्रमाण उत्सेध-वृद्धि होती है । हे गौतम! इस क्रम से यावत् ९५-९५ हजार योजन जाने पर सोलह हजार योजन की उत्सेधवृद्धि होती है।
विवेचन-लवण समुद्र के जम्बूद्वीप वेदिकान्त के किनारे से और लवणसमुद्र वेदिकान्त के किनारे से दोनों तरफ ९५-९५ प्रदेश की (त्रसरेणु) जाने पर एक प्रदेश की गहराई में वृद्धि होती है। ९५-९५ बालाग्र जाने पर एक-एक बालाग्र की गहराई में वृद्धि होती है। इसी प्रकार लिक्षा-यवमध्यअंगुल-वितस्ति-रत्नि-कुक्षि-धनुष गव्यूत (कोस), योजन, सौ योजन, हजार योजन आदि का भी कथन करना चाहिए । अर्थात् ९५-९५ लिक्षाप्रमाण आगे जाने पर एक लिक्षाप्रमाण गहराई में वृद्धि होती है यावत् ९५ हजार योजन जाने पर एक हजार योजन की गहराई में वृद्धि होती है।
९५ हजार योजन जाने पर जब एक हजार योजन की उत्सेधवृद्धि है तो त्रैराशिक सिद्धान्त से ९५ योजन पर कितनी वृद्धि होगी, यह जानने के लिए ९५०००/१०००/९५ इन तीन राशियों की स्थापना करनी चाहिए। आदि और मध्य की राशि के तीन-तीन शून्य ('शून्यं शून्येन पातयेत्' के अनुसार) हटा देने चाहिए तो ९५/१/९५ यह राशि रहती है। मध्य राशि एक का अन्त्यराशि ९५ से गुणा करने पर ९५ गुणनफल आता है, इसमें प्रथम राशि ९५ का भाग देने पर एक भागफल आता है। अर्था
भाग देने पर एक भागफल आता है। अर्थात् एक योजन की वृद्धि होती है, यही बात इन गाथाओं में कही है
पंचाणउए सहस्से गंतूणं जोयणाणि उभओ वि। जोयणसहस्समे गं लवणे ओगाह ओ होइ ॥१॥ पंचाणउईण लवणे गंतूण जोयणाणि उभओ वि।
जोयणमे गं लवणे ओगाहे णं मुणेयव्वा ।।२॥ तात्पर्य यह हुआ कि ९५ योजन जाने पर यदि एक योजन गहराई में वृद्धि होती है, तो ९५ गव्यूत पर्यन्त जाने पर एक गव्यूत की वृद्धि, ९५धनुष पर्यन्त जाने पर एक धनुष की वृद्धि होती है, यह सहज ही ज्ञात हो जाता है । यह बात गहराई को लेकर कही गई है । इसके आगे लवणसमुद्र की ऊंचाई की वृद्धि को लेकर प्रश्न किया गया है और उत्तर दिया गया है।