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________________ २२४] [जीवाजीवाभिगमसूत्र सेत्तं दसविहा सव्वजीवा पण्णत्त। सेत्तं सव्वजीवाभिगमे। इति जीवाजीवाभिगमसुत्तं सम्मत्तं। (सूत्रे गन्थानम् ४७५० ॥) २५९. अथवा सर्व जीव दस प्रकार के हैं, यथा १. प्रथमसमयनै रयिक, २. अप्रथमसमयनै रयिक, ३. प्रथमसमयतिर्यग्यो निक, ४. अप्रथमसमयतिर्यग्योनिक, ५. प्रथमसमयमनुष्य, ६. अप्रथमसमयमनुष्य, ७. प्रथमसमयदेव, ८. अप्रथमसमयदेव, ९. प्रथमसमयसिद्ध, १० अप्रथमसमयसिद्ध । भगवन् ! प्रथमसमयनैरयिक, प्रथमसमयनैरयिक के रूप में कितने समय तक रहता हे? गौतम! एक समय तक। भगवन् ! अप्रथमसमयनैरयिक उसी रूप में कितने समय तक रहता है? गौतम! एक समय कम दस हजार वर्ष तक और उत्कृष्ट एक समय कम तेतीस सागरोपम तक रहता है। भगवन् ! प्रथमसमयतिर्यग्योनिक उसी रूप में कितने समय तक रहता है? गौतम! एक समय तक। अप्रथमसमयतिर्यग्योनिक जघन्य से एक समय कम क्षुल्लकभवग्रहण और उत्कर्ष से वनस्पतिकाल तक रहता है। भगवन् ! प्रथमसमयमनुष्य उस रूप में कितने काल तक रहता है? गौतम! एक समय तक। अप्रथमसमयमनुष्य जघन्य से एक समय कम क्षुल्लकभवग्रहण और उत्कर्ष से पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्योपम तक रहता है। देव का कथन नैरयिक की तरह हैं। भगवन ! प्रथमसमयसिद्ध उस रूप में कितने समय रहता है? गौतम! एक समय तक। अप्रथमसमयसिद्ध सादि-अपर्यवसित होने से सदाकाल रहता है। भगवन् ! प्रथमसमयतिर्यग्योनिक का अन्तर कितना है? गौतम! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त अधिक दस हजार वर्ष और उत्कर्ष से वनस्पतिकाल है। अप्रथमसमयनैरयिक का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट वनस्पतिकाल है। भगवन् ! प्रथमसमयतिर्यग्योनिक का अन्तर कितना है? गौतम! जघन्य एक समय कम दो क्षुल्लकभवग्रहण है, उत्कर्ष से वनस्पतिकाल है। अप्रथमसमयतिर्यग्योनिक का अन्तर जघन्य समयाधिक क्षुल्लकभवग्रहण है और उत्कर्ष से साधिक
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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