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________________ ४] [जीवाजीवाभिगमसूत्र __ १५५. लवणे णं भंते! समुद्दे कति चंदा पभासिंसु वा पभासिंति वा पभासिस्संति वा? एवं पंचण्ह वि पुच्छा। गोयमा! लवणसमुद्दे चत्तारि चंदा पभासिंसु वा ३, चत्तारि सूरिया तविंसु वा ३, बारसुत्तरं नक्खत्तसयं जोगं जोएंसु वा ३, तिण्णि वावण्णा महग्गहसया चारं चरिंसु वा ३, दुण्णिसयसहस्सा सत्तद्धिं च सहस्सा नव य सया तारागणकोडाकोडीणं सोभं सोभिंसु वा ३। १५५. हे भगवन् ! लवणसमुद्र में कितने चन्द्र उद्योत करते थे, उद्योत करते हैं और उद्योत करेंगे? इस प्रकार चन्द्र को मिलाकर पांचों ज्योतिष्कों के विषय में प्रश्न समझने चाहिए। गौतम! लवणसमुद्र में चार चन्द्रमा उद्योत करते थे, करते हैं और करेंगे। चार सूर्य तपते थे, तपते हैं और तपेंगे, एक सौ बारह नक्षत्र चन्द्र से योग करते थे, योग करते हैं और योग करेंगे। तीन सौ बावन महाग्रह चार चरते थे, चार चरते हैं और चार चरेंगे। दो लाख सड़सठ हजार नौ सौ कोडाकोडी तारागण क्षोभित होते थे, शोभित होते हैं और शोभित होंगे। जलवृद्धि का कारण १५६. कम्हा णं भंते! लवणसमुद्दे चाउद्दसठ्ठमुद्दिट्ठपुण्णमासिणीसु अतिरेगं अतिरेगं वडति वा हायति वा? ___ गोयमा! जंबुद्दीवस्स णं दीवस्स चउद्दिसिं बाहिरिल्लाओ वेइयंताओ लवणसमुदं पंचाणउइं पंचाणउई जोयणसहस्साई ओगाहित्ता एत्थ णं चत्तारि महालिंजरसंठाणसंठिया महइमहालया महा-पायाला पण्णत्ता, तं जहा-वलयामुहे , के तुए, जूवे, ईसरे। ते णं महापाताला एगमेगं जोयणसयसहस्सं उव्वेहेणं, मूले दसजोयणसहस्साई विक्खंभेणं मझे एगपएसियाए सेढीए एगमेगं जोयणसयसहस्सं विक्खंभेणं,उवरिं मुहमूले दसजोयणसहस्साई विक्खंभेणं। तेसिं णं महापायालाणं कुड्डा सव्वत्थ समा दसजोयणसयबाहल्ला पण्णत्ता सव्ववइरामया अच्छा जाव पडिरूवा। तत्थ णं बहवे जीवा पोग्गला य अवक्कमति विउक्कमति चयंति उवचयंति सासया णं ते कुड्डा दव्वट्ठयाए वण्णपज्जवेहिं असासया। तत्थ णं चत्तारि देवा महिड्डिया जाव पलिओवमट्टिईया परिवसंति, तं जहा-काले, महाकाले, वेलंबे, पभंजणे। तेसिं णं महापायालाणं तओ तिभागा पण्णत्ता, तं जहा हेट्ठिल्ले तिभागे, मज्झिल्ले तिभागे, उवरिल्ले तिभागे। ते णं तिभागा तेत्तीसं जोयणसहस्सा तिण्णि य तेत्तीसं जोयणसयं जोयणतिभागं च बाहल्लेणं । तत्थ णं जे से हेट्ठिल्ले तिभागे एत्थ णं वाउकाओ संचिट्ठइ। तत्थ णं जे से मज्झिल्ले चत्तारि चेव चन्दा चत्तारि य सूरिया लवणतोए। बारं नक्खत्तसयं गहाण तिनेव बावन्ना ॥१॥ दो चेव सयसहस्सा सत्तट्ठी खलु भवे सहस्सा य। नव य सया लवणजले तारागणकोडिकोडीणं ॥२॥ लवणसमुद्र में तारागणों की संख्या अंकों में २६७९०००००००००००००००० इतनी है।
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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