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________________ सर्वजीवाभिगम] [२०१ जहण्णेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं अवड्ढे पोग्गलपरियट देसूणं असंजयस्स आदि दुवे णत्थि अंतरं। साइयस्स सपजवसियस्स जहन्नेणं एक्कं समयं उक्कोसेणं देसूणा पुव्वकोडी।चउत्थगस्स णथि अंतरं। अप्पाबहुयं-सव्वत्थोवा संजया, संजयासंजया असंखेजगुणा, णोसंजय-णोअसंजयणोसंजयासंजया अणंतगुणा, असंजया अणंतगुणा। सेत्तं चउव्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता। २४७. अथवा सर्व जीव चार प्रकार के हैं-संयत, असंयत, संयतासंयत और नोसंयत-नोअसंयतनोसंयतासंयत। भगवन् ! संयत, संयतरूप में कितने काल तक रहता है? गौतम! जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि तक रहता है। असंयत का कथन अज्ञानी की तरह कहना। संयतासंयत जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि। नोसंयत-नोअसंयतनोसंयतासंयत सादि-अपर्यवसित है। • संयत और संयतासंयत का अन्तर जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट देशोन अपार्धपुद्गलपरावर्त है। असंयतों के तीन प्रकारों में से आदि के दो प्रकारों में अन्तर नहीं है। सादि-सपर्यवसित असंयत का अन्तर जघन्य एक समय और उत्कृष्ट देशोन पूर्वकोटि है। चौथे नोसंयत-नोअसंयत-नोसंयतासंयत का अन्तर नहीं है। ___ अल्पबहुत्व में सबसे थोड़े संयत हैं, उनसे संयतासंयत असंख्येयगुण हैं, उनसे नोसंयत-नोअसंयतनोसंयतासंयत अनन्तगुण हैं और उनसे असंयत अनन्तगुण हैं । इस प्रकार सर्व जीवों की चतुर्विध प्रतिपति पूरी हुई। विवेचन-संयत, असंयत को लेकर सर्व जीवों के चार प्रकार इस सूत्र में बताकर उनकी कायस्थिति, अन्तर तथा अल्पबहुत्व का विचार किया गया है। सर्व जीव चार प्रकार के हैं-१. संयत,, २. असंयत, ३. संयतासंयत और ४. नोसंयत-नोअसंयतनोसंयतासंयत। कायस्थिति-संयत, संयत के रूप में जघन्य एक समय तक रह सकता है। सर्वविरति परिणाम के अनन्तर समय में किसी का मरण भी हो सकता हैं, इस अपेक्षा से जघन्य एक समय कहा गया है। उत्कर्ष से देशोन पूर्वकोटि तक रह सकता है। ____ असंयत तीन प्रकार के हैं-अनादि-अपर्यवसित, अनादि-सपर्यवसित और सादि-सपर्यवसित । अनादि-अपर्यवसित असंयत वह है जो कभी संयम नहीं लेगा। अनादि-सपर्यवसित असंयत वह है जो संयम लेगा और उसी प्राप्त संयम से सिद्धि प्राप्त करेगा। सादि-सपर्यवसित असंयत वह है, जो सर्वविरति या देशविरति से परिभ्रष्ट हुआ है। आदि दो की अनादि और अपर्यवसित होने से कालमर्यादा नहीं है, सादि-सपर्यवसितअसंयत जघन्य से अन्तर्मुहूर्त तक
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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