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[जीवाजीवाभिगमसूत्र जाने से वह सवेदक हो जाता है।
अन्तरद्वार-स्त्रीवेद का अन्तर जघन्य से अन्तर्मुहूर्त है। क्योंकि वेद का उपशमन होने पर पुनः अन्तर्मुहूर्त काल में वेद का उदय हो सकता है । अथवा स्त्रीपर्याय से निकलकर पुरूषवेद या नपुंसकवेद में अन्तर्मुहूर्त रहकर पुनः स्त्रीपर्याय में आया जा सकता है। उत्कर्ष से अन्तर वनस्पतिकाल है।
पुरूषवेद का अन्तर जघन्य एक समय है। क्योंकि उपशमश्रेणी में पुरूषवेद का उपशमन होने पर एक समय के अनन्तर मरकर पुरूषत्व रूप में उत्पन्न होना सम्भव है। उत्कर्ष से वनस्पतिकाल अन्तर है।
नपुंसकवेद का अन्तर जघन्य से अन्तर्मुहूर्त है। युक्ति स्त्रीवेद में कथित अन्तर की तरह जानना चाहिए। उत्कर्ष से साधिक सागरोपमशतपृथक्त्व का अन्तर है। इसके बाद संसारी जीव अवश्य नपुंसक रूप में उत्पन्न होता है।
__ अवेदक में सादि-अपर्यवसित का अन्तर नहीं होता, अपर्यवसित होने से। सादि-सपर्यवसित अवेदक का जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है, क्योंकि अंतर्मुहूर्त के बाद पुनः श्रेणी का आरम्भ सम्भव है। उत्कर्ष से अनन्तकाल। यह अनन्तकाल कालमार्गणा से अनन्त उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी रूप है तथा क्षेत्रमार्गणा से देशोन अपार्धपुद्गलपरावर्त है । इतने काल के पश्चात् जिसने पहले श्रेणी की है वह पुनः श्रेणी का आरम्भ करता ही है।
अल्पबहुत्वद्वार-सबसे थोड़े पुरूषवेदक हैं, क्योंकि देव-मनुष्य-तिर्यंचगति में वे अल्प ही हैं। उनसे स्त्रीवेदक संख्यातगुण हैं । क्योंकि तिर्यंचगति में स्त्रियां पुरूषों से तिगुनी हैं, मनुष्यगति में सत्ताईस गुणी हैं और देवगति में बत्तीस गुणी हैं। उनसे अवेदक अनन्तगुण हैं, क्योंकि सिद्ध अनन्त हैं। उनसे. नपुंसकवेदक अनन्तगुण हैं, क्योंकि वनस्पतिजीव सिद्धों से अनन्तगुण हैं।।
२४६. अहवा चउव्विहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा-चक्खुदंसणी अचक्खुदंसणी अवधिदसणी केवलदसणी।
चक्खुदसंणी णं भंते! • ? जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं सागरोवमसहस्सं साइरेगं। अचक्खुदसंणी दुविहे पण्णत्ते-अणाइए वा अपज्जवसिए, अणाइए वा सपज्जवसिए।
ओहिदसणी जहन्नेणं एवं समयं उक्कोसेणं दो छावट्ठिसागरोपमाणं साइरेगाओ। केवलदसणी साइए अपज्जवसिए।
चक्खुदंसणिस्स अंतरं जहन्नेणं अंतोमुहत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो।अचक्खुदंसणिस्स दुविहस्स नत्थि अंतरं। ओहिदंसणिस्स जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वणस्सइकालो। केवलदसणिस्स णत्थि अंतरं।
अप्पाबहुयं-सव्वत्थोवा ओहिदसणी, चक्खुदंसणी असंखेजगुणा, केवलदसणी अणंतगुणा, अचक्खुदंसणी अणंतगुणा।