SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 190
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सर्वजीवाभिगम ] [ १७१ ( एवं सल्लेस्सा चेव अलेस्सा चेव, ससरीरा चेव असरीरा चेव । ) संचिट्ठणं अंतरं अप्पाबहुयं जहा सइंदियाणं । अहवा दुविहा सव्वजीवा पण्णत्ता, तं जहा - सवेदगा चेव अवेदगा चेव । सवेदए णं भंते! सवेदएत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! सवेदए तिविहे पण्णत्ते, तं जहा - अणाइए अपज्जवसिए, अणाइए सपज्जवसिए, साइए सपज्जवसिए । तत्थ णं जेसे साइए सपज्जवसिए से जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं अक्कोसेणं अनंतकालं जाव खेत्तओ अवड्ढं पोग्गलपरियट्टं देसूणं । अवेयर णं भंते! अवेयएत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! अवेयए दुविहे पण्णत्ते, जहा - साईए वा अपज्जवसिए, साइए वा सपज्जवसिए । तत्थ णं जेसे साइए सपज्जवसिए से जहणणेणं एक्वं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं । सवेयगस्स णं भंते! केवइयं कालं अंतरं होइ ? अणादियस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं । अणादियस्स सपज्जवसियस्स नत्थि अंतरं । सादियस्स सपज्जवसियस्स जहण्णेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं । अवेयगस्स णं भंते! केवइयं कालं अंतरं होइ ? साइयस्स अपज्जवसियस्स णत्थि अंतरं साइस सज्जवसियस्स जहन्त्रेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं अनंतकालं जाव अवड्ढं पोगपरियहं देणं । अप्पाबहुगं - सव्वत्थोवा अवेयगा, सवेयगा अनंतगुणा । एवं सकसाई चेव अकसाई चेव जहा सवेयगे तहेव भाणियव्वे । अहवा दुविहा सव्वजीवा - सलेसा य अलेसा य जहा असिद्धा सिद्धा । सव्वत्थोवा अलेसा, ससा अनंतगुणा । २३२. अथवा सब जीव दो प्रकार के हैं, यथा-सेन्द्रिय और अनिन्द्रिय । भगवन् ! सेन्द्रिय, सेन्द्रिय के रूप गौतम ! सेन्द्रिय के रूप में काल से काल से कितने समय तक रहता है ? कितने समय तक रहता है ? गौतम ! सेन्द्रिय जीव दो प्रकार के हैं- अनादि- अपर्यवसित और अनादि सपर्यवसित । अनिन्द्रिय में सादि-अपर्यवसित। दोनों में अन्तर नहीं है । सेन्द्रिय की वक्तव्यता असिद्ध की तरह और अनिन्द्रिय को वक्तव्यता सिद्ध की तरह कहनी चाहिए। अल्पबहुत्व में सबसे थोड़े अनिन्द्रिय हैं और सेन्द्रिय अनन्तगुण हैं । अथवा दो प्रकार के सर्व जीव हैं - सकायिक और अकायिक । इसी तरह सयोगी और अयोगी (सलेश्य और अलेश्य, सशरीर और अशरीर)। इनकी संचिट्ठणा, अन्तर और अल्पबहुत्व सेन्द्रिय की तरह जानना चाहिए। अथवा सब जीव दो प्रकार के है- सवेदक और अवेदक ।
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy