SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 162
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षड्विधाख्या पंचम प्रतिपत्ति ] [ १४३ (४) एएसि णं भंते! सुहुमाणं बादराण य पज्जत्ताणं अपज्जताणं य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा. ? गोयमा! सव्वत्थोवा बायरा पज्जत्ता, बायरा अपज्जत्ता असंखेज्जगुणा, सव्वत्थोवा सुहुमा अपज्जत्ता, सुहुमपज्जत्ता संखेज्जगुणा। एवं सुहुमपुढवि बायरपुढवि जाव सुहुमणिगोदा बायरनिगोया, नवरं पत्तेयसरीरवणस्सइकाइया सव्वत्थोवा पज्जत्ता अपज्जत्ता, असंखेज्जगुणा । एवं बायरतसकाइयावि । (५) सव्वेसिं पज्जत्तापज्जत्तगाणं कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वाव विसेसाहियां वा? 1 गोयमा ! सव्वत्थोवा वायरते उक्काइया पज्जत्ता, बायरतसकाइया पज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, ते चेव अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, पत्तेयसरीरबायरवणस्सइ अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, बायरणिओया पज्जत्ता असंखेज्ज०, बायरपुढवि० असंखे०, आउ-वाउ पज्जत्ता असंखेज्जगुणा, वायरतेउकाइया अपज्जत्ता असंखे० पत्तेयसरीर० असंखे ० वायरणिगोयपज्जत्ता असं० वायरपुढवि० आउ वाउ - काइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, सुहुमतउक्काइया अपज्जत्तगा असं० सुहुमपुढवि० आउ वाउ - अपज्जत्ता विसेसाहिया, सुहुमतेउकाइयपज्जत्तगा संखेज्जगुणा, सुहुमपुढवि - आउ वाउपज्जत्तगा विसेसाहिया, सहुमणिगोया अपज्जंत्तगा असंखेज्जगुणा, सहुमणिगोया पज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, वायरवणस्सइकाइया पज्जत्तगा, अनंतगुणा, बायरा पज्जत्तगा विसेसाहिया, बायरवणस्सइ अपज्जत्ता असंखेज्जगुणा, बायरा अपज्जत्ता विसेसाहिया, बायरा विसेसाहिया, सुहुमवणस्सइकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा, सुहुमा अपज्जत्ता विसेसाहिया, सुहुमवणस्सइकाइया पज्जत्ता संखेज्जगुणा, सुहुमा पज्जत्तगा विसेसाहिया, सुहुमा विसेसाहिया । २२१. (आ) स्पष्टता के लिए और पुनरावृत्ति को टालने के लिए प्रस्तुत पाठ का अर्थ विवेचनायुक्त दिया जाता है । प्रस्तुत पाठ में सूक्ष्मों और बादरों के समदित पांच अल्पबहुत्व कहे गये हैं । वे इस प्रकार (१) प्रथम अल्पबहुत्व -- भगवन् ! सूक्ष्मों में सूक्ष्म पृथ्वीकायिक यावत् सूक्ष्म निगोदों में तथा बादरों में- बादर पृथ्वीकायिक यावत् बादर त्रसकायिकों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक है ? गौतम! सबसे थोड़े बादर त्रसायिक हैं, उनसे बादर तेजस्कायिक असंख्येयगुण हैं, उनसे प्रत्येकशरीर बादर वनस्पतिकायिक असंख्येयगुण हैं, उनसे बादर निगोद असंख्येयगुण हैं, उनसे बादर पृथ्वीकाय असंख्येयगुण हैं, उनसे बादर अप्काय बादर वायुकाय क्रमशः असंख्येगुण हैं, उन बादर वायुकाय से सूक्ष्म तेजस्काय असंख्येयगुण हैं, उनसे सुक्ष्म पृथ्वीकाय विशेषाधिक हैं, उनसे सूक्ष्म
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy