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________________ १४२] [जीवाजीवाभिगमसूत्र (५) पांचवां अल्पबहुत्व छह कायों के पर्याप्त और अपर्याप्तों का समुदित रूप से कहा गया है। वह निम्न है___ सबसे थोड़े बादर तेजस्कायिक पर्याप्त, उनसे बादर त्रसकायिक पर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे बादर प्रत्येकवनस्पतिकायिक पर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे बादर निगोद पर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे बादर पृथ्वीकायिक पर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे बादर अप्कायिक पर्याप्त असंख्येयगुण, उनसे बादर वायुकायिक पर्याप्त असंख्येयगुण । (उक्त पदों की युक्ति पूर्ववत् जाननी चाहिए।) उनसे बादर तेजस्कायिक अपर्याप्त असंख्येयगुण हैं, क्योंकि बादर वायुकायिक पर्याप्त असंख्येयलोकाकाशप्रदेश के आकाशप्रदेशों के तुल्य हैं, किन्तु बादर तेजस्कायिक अपर्याप्त असंख्येयलोकाकाशप्रदेशप्रमाण हैं । असंख्यात के असंख्यात भेद होने से यह असंख्यात पूर्व के असंख्यात से असंख्येयगुण जानना चाहिए। बादर तेजस्कायिक अपर्याप्त से प्रत्येक बादर वनस्पतिकायिक, बादर निगोद, बादर पृथ्वीकायिक, बादर अप्कायिक, बादर वायुकायिक अपर्याप्त यथोत्तर असंख्येयगुण कहने चाहिए। बादर वायुकायिक अपर्याप्तों से बादर वनस्पतिकायिक पर्याप्त अनन्तगुण हैं, क्योंकि एक-एक बादर निगोद में अनन्त जीव हैं। उनसे सामान्य बादर पर्याप्त विशेषाधिक हैं, क्योंकि बादर तेजस्कायिक आदि पर्याप्तों का उनमें प्रक्षेप होता है। उनसे बादर वनस्पतिकायिक अपर्याप्त असंख्येयगुण हैं, क्योंकि एक-एक पर्याप्त बादर वनस्पतिकायिक निगोद की निश्रा में असंख्येय अपर्याप्त बादर वनस्पतिकायिक निगोद उत्पन्न होते हैं। उनसे सामान्य बादर अपर्याप्त विशेषाधिक हैं, क्योंकि उनमें बादर तेजस्कायिक आदि अपर्याप्तों का प्रक्षेप है। उनसे पर्याप्तअपर्याप्त विशेषण रहित सामान्य बादर विशेषाधिक हैं, क्योंकि इनमें सब बादर पर्याप्त-अपर्याप्तों का समावेश हो जाता है। इस प्रकार बादर को लेकर पांच अल्पबहुत्व कहे हैं। सूक्ष्म-बादरों के समुदित अल्पबहुत्व २२१ (आ) (१) एएसि णं भंते! सुहुमाणं सुहमपुढविकाइयाणं जाव सुहुमणिगोयाणं बायराणं बादरपुढविकाइयाणं जाव बादरतसकाइयाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा.? गोयमा! सव्वत्थोवा बायरतसकाइया, बायरते उक्काइया असंखेज्जगुणा, पत्तेयसरीरबायरवणस्सइकाइया असंखेज्जगुणा तहेव जाव बायरवाउकाइया असंखेज्जगुणा, सुहुमतेउक्काइया असंखेज्जगुणा, सुहुमपुढविकाइया विसेसाहिया, सुहुम आउ० सुहुम वाउ० विसेसाहिया, सुहुमनिगोया असंखेज्जगुणा, बायरवणस्सइकाइया अणंतगुणा, बायरा विसेसाहिया, सुहुमवणस्सकाइया असंखेज्जगुणा, सुहुमा विसेसाहिया। (२-३ ) एवं अपज्जत्तगााव पज्जत्तगा।व, णवार सम्पत्योपा पाप ..... बायरतसकाइया पज्जत्ता असंखेज्जगुणा, पत्तेयसरीरबादरवणस्सइकाइया पज्जत्ता असंखेज्जगुणा, सेसं तहेव जाव सुहुमपज्जत्ता विसेसाहिया।
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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