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________________ षड्विधाख्या पंचम प्रतिपत्ति ] [ १३१ विवेचन - प्रस्तुत सूत्र में पृथ्वीकायिक यावत् त्रसकाय की कायस्थिति (संचिट्ठणा) और अन्तर का निरूपण किया गया है । संचिट्ठणा या कायस्थिति का अर्थ है कि वह जीव उस रूप में लगातार जितने समय तक रह सकता है और अन्तर का अर्थ है कि वह जीव उस रूप से निकल कर फिर जितने समय के बाद फिर उस रूप में आता है । प्रस्तुत सूत्र में इन दो द्वारों का निरूपण है । प्रश्न और उत्तर के रूप में जो कायस्थिति और अन्तर बताया है, वह पाठसिद्ध ही है । केवल उसमें आये हुए असंख्येयकाल और अनन्तकाल का स्पष्टीकरण आवश्यक है । असंख्येयकाल -- असंख्येयकाल का निरूपण दो प्रकार से किया गया है-काल और क्षेत्र से । असंख्यात उत्सर्पिणी और असंख्यात अवसर्पिणी प्रमाण काल को असंख्येयकाल कहते हैं । असंख्यात लोक-प्रमाण आकाशखण्डों में से प्रतिसमय एक-एक प्रदेश का अपहार करने पर जितने समय में वे आकाशखण्ड निर्लेपित (खाली) हो जाएं, उस समय को क्षेत्रापेक्षया असंख्येयकाल कहते हैं । अनन्तकाल -- यह निरूपण भी काल और क्षेत्र से किया गया है । अनन्त उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी प्रमाण काल अनन्तकाल है । यह कालमार्गणा की दृष्टि से है । क्षेत्रमार्गणा की दृष्टि से अनन्तानन्त लोकालोकाकाशखण्डों में से प्रतिसमय एक-एक प्रदेश का अपहार करने पर जितने काल में वे निर्लेप हो जायें, उस काल को अनन्तकाल समझना चाहिए। इसी अनन्तकाल को पुद्गलपरावर्त द्वारा कहा जाये तो असंख्येय पुद्गलपरावर्तरूप काल अनन्तकाल है । इन पुद्गलपरावर्तों की संख्या उतनी है, जितनी आवलिका के असंख्येय भाग में समयों की संख्या है । प्रस्तुत पाठ में अन्तरद्वार में बताये हुए वनस्पतिकाल से तात्पर्य है अनन्तकाल और पृथ्वीकाय से तात्पर्य है - असंख्यकाल । अल्पबहुत्वद्वार २१३. अप्पाबहुयं-सव्वत्थोवा तसकाइया, तेउक्काइया असंख्येज्जगुणा, पुढविकाइया । विसेसाहिया, आउकाइया विसेसाहिया, वाउक्काइया विसेसाहिया, वणस्सइकाइया अनंतगुणा । एवं अपज्जत्तगावि पज्जत्तगावि । एएसि णं भंते! पुढविकाइयाणं पज्जत्तगाण अपज्जतगाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा एवं जाव विसेसाहिया ? गोयमा ! सव्वत्थोवा पुढविकाइया अपज्जत्तगा, पुढविकाइया पज्जत्तगा संखेज्जगुणा । एएसि णं आउकाइयाणं? सव्वत्थोवा आउक्काइया अपज्जत्तगा, पज्जत्तगा संखेज्जगुणा जाव वणस्सइकाइयावि । सव्वत्थोवा तसकाइया पज्जत्तगा, तसकाइया अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा । एएसि णं भंते! पुढविकाइयाणं जाव तसकाइयाणं पज्जत्तग- अपज्जत्तगाण य करे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? सव्वत्थोवा तसकाइया पज्जत्तगा,
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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