SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 149
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३०] [जीवाजीवाभिगमसूत्र २१२. पुढविकाए णं भंते! पुढविकाइएत्ति कालओ केवच्चिरं होइ? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं असंखेज कालं जाव असंखेज्जा लोया। एवं जाव आउ-तेउवाउक्काइयाणं, वणस्सइकाइयाणं अणंतं कालं जाव आवलियाए असंखेज्जइभागो। तसकाइए णं भंते! तसकाइएत्ति कालओ केवचिरं होइ? गोयमा! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं दो सागरोवमसहस्साइं संखेज्जवासमब्भहियाइं। अपज्जत्तगाणं छण्हवि जहण्णेणवि उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं । पज्जत्तगाणं वाससहस्सा संखा पुढविदगाणिलतरुणपज्जत्ता। तेऊ राइंदिसंखा तस सागरसयपुत्ताइं॥१॥ (पन्जत्तगाणवि सव्वेसिं एवं) पुढविकाइयस्स णं भंते! केवइयं कालं अंतरं होइ? गोयमा जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वणप्फइकाले। एवं आउ-तेउ-वाउकाइयाणं वणस्सइकालो। तसकाइयाणवि। वणस्सइकाइयस्स पुढविकाइयकालो। एवं अपज्जत्तगाणवि वणस्सइकालो, वणस्सईणं पुढविकालो। पज्जत्तगाणवि एवं चेव वणस्सइकालो, पज्जत्तवणस्सईणं पुढविकालो। २१२. भगवन् ! पृथ्वीकाय, पृथ्वीकाय के रूप में कितने काल तक रह सकता है? गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट असंख्येय काल यावत् असंख्येय लोकप्रमाण आकाशखण्डों का निर्लेपनाकाल। - इसी प्रकार यावत् अप्काय, तेजस्काय और वायुकाय की संचिट्ठणा जाननी चाहिए। वनस्पतिकाय की संचिट्ठणा अनन्तकाल है यावत् आवलिका के असंख्यातवें भाग में जितने समय हैं, उतने पुद्गलपरावर्तकाल तक। त्रसकाय की कायस्थिति (संचिट्ठणा) जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यातवर्ष अधिक दो हजार सागरोपम है। छहों अपर्याप्तों की कायस्थिति जघन्य भी अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट भी अन्तर्मुहूर्त है। पर्याप्तों में पृथ्वीकाय की उत्कृष्ट कायस्थिति संख्यात हजार वर्ष है। यही अप्काय, वायुकाय और वनस्पतिकाय पर्याप्तों की है। तेजस्काय पर्याप्तक की कायस्थिति संख्यात रातदिन की है, त्रसकाय पर्याप्त की कायस्थिति साधिक सागरोपमशतपृथक्त्व है। भगवन् ! पृथ्वीकाय का अन्तर कितना है? गौतम! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से वनस्पतिकाल है। इसी प्रकार अप्काय, तेजस्काय और वायुकाय का अन्तर वनस्पतिकाल है। त्रसकायिकों का अन्तर भी वनस्पतिकाल है। वनस्पतिकाय का अन्तर पृथ्वीकायिक कालप्रमाण (असंख्येय काल) है। इसी प्रकार अपर्याप्तकों का अन्तरकाल वनस्पतिकाल है । अपर्याप्त वनस्पति का अन्तर पृथ्वीकाल है। पर्याप्तकों का अन्तर वनस्पतिकाल है। पर्याप्त वनस्पति का अन्तर पृथ्वीकाल है।
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy