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________________ १२६] [जीवाजीवाभिगमसूत्र त्रसकाय की कायस्थिति संख्येय वर्ष अधिक दो हजार सागरोपम की कही गई है। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय और पंचेन्द्रिय सूत्र में जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट सर्वत्र वनस्पतिकाल है। जो द्वीन्द्रिय से निकल कर अनन्तकाल तक वनस्पति में रहने के बाद फिर द्वीन्द्रियादि में उत्पन्न होने की अपेक्षा से समझना चाहिए। जिस प्रकार अन्तर विषयक पांच औघिक सूत्र कहे हैं उसी प्रकार पर्याप्त विषय में, अपर्याप्त विषय में भी कह लेने चाहिए। अल्पबहुत्व द्वार २०९. एएसि णं भंते! एगिंदियाणं बेइंदियाणं तेइंदियाणं चउरिदियाणं पंचिंदियाणं कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा बहुया वा तुल्ला वा विसेसाहिया वा? गोयमा! सव्वत्थोवा पंचिंदिया, चउरिदिया विसेसाहिया, तेइंदिया विसेसाहिया, बेइंदिया विसेसाहिया, एगिंदिया अणंतगुणा। एवं अपज्जत्तगाणं सव्वत्थोवा पंचिंदिया अपज्जत्तगा, चउरिंदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, तेइंदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, बेइंदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, एगिंदिया अपज्जत्तगा अणंतगुणा, सइंदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया।सव्वत्थोवा चउरिदिया पज्जत्तगा, पंचिंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया, बेइंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया, तेइंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया, एगिंदिया पज्जत्तगा अणंतगुणा, सइंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया। एतेसि णं भंते! सइंदियाणं पज्जत्तग-अपज्जत्तगाणं कयरे कयरेहित्तो अप्पा वाo? गोयमा! सव्वत्थोवा सइंदिया अपज्जत्तगा, सइंदियपज्जत्तगा संखेज्जगुणा। एवं एगिंदियावि। एएसि णं भंते! बेइंदियाणं पज्जत्तापज्जत्तगाणं अप्पाबहुं? गोयमा! सव्वत्थोवा बेइंदियपज्जत्तगा अपज्जत्तगा असंखेज्जगुणा। एवं तेइंदिया चउरिंदिया पंचिंदिया वि। ____एतेसि णं भंते! एगिदियाणं, बेइंदियाणं, तेइंदियाणं चउरिंदियाणं पंचिंदियाण य पर जत्तगाण य अपज्जत्तगाण य कयरे कयरेहिंतो अप्पा वा०? गोयमा! सव्वत्थोवा चउरिंदिया पज्जत्तगा, पंचिंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया, बेइंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया, तेइंदिया पज्जत्तगा विसेसाहिया, पंचिंदिया अपज्जत्तगा अंसखेज्जगुणा, चउरिंदिया अपज्जत्ता विसेसाहिया, तेइंदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, बेइंदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, एगिंदिया अपज्जत्तगा अणंतगुणा, सइंदिया अपज्जत्तगा विसेसाहिया, एगिंदिया पज्जत्ता संखेज्जगुणा, सइंदियपज्जत्ता विसेसाहिया, सइंदिया विसेसाहिया।सेत्तं पंचविहा संसारसमावण्णगजीवा॥ १."तसकाइए णं भंते! तसकाएत्ति कालओ केवच्चिरं होई? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमहत्तं उक्कोसेणं दो सागरोवमसहस्साई संखेज्जवासमब्भहियाइं।"
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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