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________________ ९२] [जीवाजीवाभिगमसूत्र १९४. (ई) उस चन्द्रविमान को उत्तर की ओर से चार हजार अश्वरूपधारी देव उठाते हैं। वे अश्व इन विशेषणों वाले हैं --वे श्वेत हैं , सुन्दर हैं , सुप्रभावले हैं , उत्तम जाति के हैं , पूर्ण बल और वेग प्रकट होने की (तरूण) वय वाले हैं , हरिमेलकवृक्ष की कोमल कली के समान धवल आंख वाले हैं वे अयोधन की तरह दृढ़ीकृत, सुबद्ध, लक्षणोन्नत कुटिल (बांकी) ललित उछलती चंचल और चपल चाल वाले है , लांघना, उछलना, दौड़ना, स्वामी को धारण किये रखना त्रिपदी (लगाम) के चलाने के अनुसार चलना, इन सब बातों की शिक्षा के अनुसार ही वे गति करने वाले हैं हिलते हुए रमणीय आभूषण उनके गले में धारण किये हुए हैं, उनके पार्श्वभाग सम्यक् से झुके हुए हैं, संगत-प्रमाणापेत हैं , सुन्दर हैं , यथोचित मात्रा में मोटे रति पैदा करने वाले हैं, मछली और पक्षी के समान उनकी कुक्षि हैं , पीन-पीवर और गोल सुन्दर आकार वाली उनकी कटि है, दोनों कपोलों के बाल ऊपर से नीचे तक अच्छी तरह से लटकते हुए हैं , लक्षण और प्रमाण से युक्त हैं , प्रशस्त हैं , रमणीय हैं। उनकी रोमराशि पतली, सूक्ष्म, सुजात और स्निग्ध हैं। उनकी गर्दन के बाल मृदु, विशद, प्रशस्त, सूक्ष्म और सुलक्षणोपेत हैं और सुलझे हुए हैं। सुन्दर और विलासपूर्ण गति से हिलते हुए दर्पणाकार स्थासक-आभूषणों से उनके ललाट भूषित हें , मुखमण्डप, अवचुल, चमर-स्थासक आदि आभूषणों से उनकी कटि परिमंडित है. तपनीय स्वर्ण के उनके खर हैं तपनीय स्वर्ण की जिह्ना हैं तपनीय स्वर्ण के ताल हैं तपनीय स्वर्ण के जोतों से वे भलीभांति जते हए हैं। वे इच्छापूर्वक गमन करने वाले हैं, प्रीतिपूर्वक चलने वाले हैं, मन को लुभावने लगते हैं, मनोहर हैं । वे अपरिमित गति वाले हैं, अपरिमित बल-पुरूषाकार-पराक्रम वाले है । वे जोरदार हिनहिनाने की मधुर और मनोहर ध्वनी से आकाश को गुंजाते हुए दिशाओं को शोभित करते हुए चन्द्रविमान को उत्तर-दिशा की ओर से उठाते हैं । __ १९४. (उ) एवं सूरविमाणस्सवि पुच्छा ? गोयमा ! सोलह देवसाहस्सीओ परिवहंति पुव्वकमेणं । एवं गहविमाणस्सवि पुच्छा ? गोयमा ! अट्ठ देवसाहस्सीओ परिवहंति पुव्वकमेणं। दो देवाणं साहस्सीओ पुरथिमिल्लं बाहं परिवहंति, दो देवाणं साहस्सीओ दक्खिणिल्लं०, दो देवाणं साहस्सीओ पच्चत्थिमं, दो देवसाहस्सीओ उत्तरिल्लं बाहं परिवहंति। एवं णक्खत्तविमाणस्स वि पुच्छा ? गोयमा! चत्तारि देवसाहस्सीओ परिवहंति सीहरूवधारीणं देवाणं दस देवसया पुरिथमिल्लं बाहं परिवहंति एवं चउद्दिसिं। एवं तारगाणपि णवरं दो देवसाहस्सीओ परिवहंति, सीहरूवधारीणं देवाणं पंचदेवसया पुरथिमिल्लं बाहं परिवहंति एवं चउद्दिसिं। ___ १९४. (उ) सूर्य के विमान के विषय में भी यही प्रश्न करना चाहिए। गौतम ! सोलह हजार देव पूर्वक्रम के अनुसार सूर्यविमान को वहन करते है। इसी प्रकार ग्रहविमान के विषय में प्रश्न करने पर भगवान् ने कहा-गौतम ! आठ हजार देव ग्रहविमान को वहन करते हैं । दो हजार देव पूर्व की तरफ से, १. चन्द्रादि विमानानि जगतः स्वभावात निरालम्बानि, तथापि कियन्तो विनोदिनोऽनेकरूपधराः अभियोगिकादेवाः सततवहनशीलेषु विमानेषु अधः स्थित्वा परिवहन्ति कौतूहलादिति। - वृति
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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