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________________ तृतीय प्रतिपत्ति : ज्योतिष्क चन्द्र-सूर्याधिकार] [९१ शहद की गोली के समान चमकते पीले वर्ण के हैं, इनकी जंघाए विशाल, मोटी और मांसल हैं, इनके स्कंध विपुल और परिपूर्ण हैं, इनके कपोल गोल और विपुल हैं इनके ओष्ठ घन के समान निचित (मांसयुक्त) और जबड़ों से अच्छी तरह संबद्ध हैं , लक्षणोपेत उन्नत एवं अल्प झुके हुए हैं । वे चंक्रमित (बांकी) ललित (विलासयुक्त) पुलित (उछलती हुई) और चक्रवाल की तरह चपल गति से गर्वित हैं, मोटी स्थूल वर्तित (गोल) और सुसंस्थित उनकी कटि है। उनके दोनों कपोलों के बाल ऊपर से नीचे तक अच्छी तरह लटकते हुए हैं, लक्षण और प्रमाणयुक्त, प्रशस्त और रमणीय हैं उनके खुर और पूंछ एक समान हैं, उनके सींग एक समान पतले और तीक्ष्ण अग्रभाग वाले हैं। उनकी रोमराशि पतली सूक्ष्म सुन्दर और स्निग्ध है। इनके स्कंधप्रदेश उपचित परिपुष्ट मांसल और विशाल होने से सुन्दर हैं, इनकी चितवन वैडूर्यमणि जैसे चमकीले कटाक्षों से युक्त अतएव प्रशस्त और रमणीय गर्गर नामक आभूषणो से शोभित हैं , घग्घर नामक आभूषण से उनका कंठ परिमंडित हैं, अनेक मणियों स्वर्ण और रत्नों से निर्मित छोटी-छोटी घंटियों की मालाएं उनके उर पर तिरछे रूप में पहनायी गई हैं। उनके गले में श्रेष्ठ घंटियों की मालाएं पहनायी गई हैं । उनसे निकलने वाली कांति से उनकी शोभा में वृद्धि हो रही हैं । ये पद्मकमल की परिपूर्ण सुगधियुक्त मालाओं से सुगन्धित हैं। इनके खुर वज्र जैसे हैं, इनके खुर विविध प्रकार के हैं अर्थात विविध विशिष्टता वाले हैं। उनके दांत स्फटिक रत्नमय हैं, तपनीय स्वर्ण जैंसी उनकी जिह्वा हैं , तपनीय स्वर्णसम उनके तालु हैं, तपनीय स्वर्ण के जोतों से वे जुते हुए हैं । वे इच्छानुसार चलने वाले हैं, प्रीतिपूर्वक चलनेवाले हैं, मन को लुभानेवाले हैं , मनोहर और मनोरम हैं उनकी गति अपरिमित है, अपरिमित बल-वीर्य-पुरूषकार-पराक्रम वाले हैं, वे जोरदार गंभीर गर्जना के गधुर एवं मनोहर स्वर से आकाश को गुंजातें हुए और दिशाओं को शोभित करते हुए गति करते हैं। (इस प्रकार चार हजार वृषभरूपधारी देव चन्द्रविमान को पश्चिमदिशा से उठाते हैं।) १९४. (ई) चंदविमाणस्स णं उत्तरेणं सेयाणं सुभगाणं सुप्पभाणं जच्चाणं तरमल्लिहायणाणं हरिमेलामउलमल्लियच्छाणं घणणिचियसुबद्धलक्खणुण्णयचंकमिय-(चंयुरिय) ललियपुलियचलचवलचंचलगईणं लंघणवग्गणधावणधारणतिवइजइणसि -क्खियगईणं ललंतलामगलायवरभूसणाणं सण्णयपासाणं संगयपासाणं सुजायपासाणं मियमाइयपीणरइयपासाणं झसविहगसुजायकु च्छीणंपीणपीवरवट्टिय-सुसंठियकडीणं ओलंबपलंबलक्खणपमाणजुत्तपसत्थरमणिजबालगंडाणं तणुसुहुमसुजायणिद्धलोमच्छवि -धराणंमिउविसयपसत्थसुहुमलक्खणविकिण्णकेसरवालिधराणं ललियसविलासगइललं -तथासगलला-थासगललाडवरभूसणाणं मुहमंडगोचूलचमर थासगपरिमंडयकडीणं तवण्णिजखुराणं तवणिजजीहाणं तवणिजतालुयाणं तवणिज्जजोत्तगसुजोइयाणं कामगमाणं पीइगमाणं मणोगमाणं मणोहराणं अमियगईणं अमियबलवीरियपुरिसकारपरक्कमाणं महयाहयहेसियकिलकिलाइयरवेणं महुरेणं मणहरेण य पूरेता अंबरं दिसाओ य सोभयंता चत्तारि देवसाहस्सीओ हयरूवधारीणं देवाणं उत्तरिल्लं बाहं परिवहति।
SR No.003455
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1991
Total Pages242
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size5 MB
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