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________________ [३१ प्रथम प्रतिपत्तिः पृथ्वीकाय का वर्णन] किं नेरइयतिरिक्खमणुस्सदेवेहितो उववजति ? गोयमा! नो नेरइएहिंतो उववजंति, तिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति, मणुस्सेहिंतो उववजंति, नो देवेहिंतो उववजंति, तिरिक्खजोणियपजत्तापजत्तेहिंतो असंखेजवासाउयवज्जेहिंतो उववजंति, मणुस्सेहितो अकम्मभूमिग-असंखेज्जवासाउयवग्जेहिंतो उववजंति।वक्कंति-उववाओ भाणियव्यो। [१९] भगवन्! वे जीव कहाँ से आकर उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नरक से, तिर्यश्च से, मनुष्य से या देव से आकर उत्पन्न होते हैं ? गौतम! वे नरक से आकर उत्पन्न नहीं होते, तिर्यञ्च से आकर उत्पन्न होते हैं, मनुष्य से आकर उत्पन्न होते हैं, देव से आकर उत्पन्न नहीं होते हैं। . तिर्यञ्च से उत्पन्न होते हैं तो असंख्यातवर्षायु वाले भोगभूमि के तिर्यञ्चों को छोड़कर शेष पर्याप्तअपर्याप्त तिर्यचों से आकर उत्पन्न होते हैं। मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं तो अकर्मभूमि वाले और असंख्यात वर्षों की आयु वालों को छोड़कर शेष मनुष्यों से आकर उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार (प्रज्ञापना के अनुसार) व्युत्क्रान्ति-उपपात कहना चाहिए। [२०] तेसिं णं भंते! जीवाणं केवइयं कालं ठिई पण्णत्ता? गोयमा! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेण वि अंतोमुहुत्तं। [२०] उन जीवों की स्थिति कितने काल की कहीं गई है ? गौतम! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से भी अन्तर्मुहूर्त उनकी स्थिति है । [२१] ते णं भंते! जीव मारणंतियसमुग्घाएणं किं समोहया मरंति असमोहया मरंति ? गोयमा! समोहया वि मरंति असमोहया वि मरंति। [२१] वे जीव मारणान्तिकसमुद्घात से समवहत होकर मरते हैं या असमवहत होकर ? गौतम! वे मारणान्तिकसमुद्घात से समवहत होकर भी मरते हैं और असमवहत होकर भी मरते हैं। [२२] ते णं भंते! जीवा अणंतरं उव्वट्टित्ता कहिं गच्छंति ? कहिं उववजति ? किं नेरइएसु उववजंति, तिरिक्खजोणिएसु उववजति, मणुस्सेसु उववजंति, देवेसु उववज्जति ? गोयमा! नो नेरइएसु उववजंति, तिरिक्खजोणिएसु उववजंति, मणुस्सेसु उववजति, णो देवेसु उववजंति।
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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