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[जीवाजीवाभिगमसूत्र
ताई भंते! ओगाढाई आ० अणोगाढाई आ० ? गोमा ! ओगाढाई आ० नो अणोगाढाई आ० । ताइं भंते! किं अणंतरोवगाढाई आ० परंपरोवगाढाई आ० ? गोयमा! अणंतरोवगाढाई आ०, नो परंपरोवगाढाई आ० । ताई भंते! किं अणुई आ०, बायराई आ० ? गोमा ! अणू पि आ०, बायराइं पि आहारेंति । ताई भंते! उड् आ०, अहे आ०, तिरियं आहारेंति ? गोयमा ! उड्ढं पि आ०, अहे वि आ०, तिरियं पि आ० ? ताई भंते! किं आई आ०, मज्झे आ०, पज्जवसाणे आहारेंति ? गोमा ! आई पि आ०, मज्झे वि आ०, पज्जवसाणे पि आ० । ताई भंते! किं सविसए आ०, अविसए आ० । गोमा ! सविसए आ०, नो अविसए आ० ?
ताई भंते किं आणुपुव्विं आ०, अणाणुपुव्विं आ० ?
गोमा ! आणुपुवि आ०, नो अणाणुपुवि आहारेंति ।
ताई भंते! किं तिदिसिं आहारेंति, चउदिसिं आ० पंचदिसिं आ०, छदिसिं आ० ? गोयमा! निव्वाघाएणं छदिसिं । वाघायं पडुच्च सिय तिदिसिं सिय चउदिसिं सिय पंचदिसिं ।
उस्सन्नकारणं पडुच्च वण्णओ कालाई नीलाइं जाव सुक्किलाई, गंधओ सुब्भिगंधाई दुभिगंधाई रसओ तित्तजावमहुराई, फासओ कक्खडमउय जाव निद्धलुक्खाई, तेसिं पोराणें वण्णगुणे विप्परिणामइत्ता परिपालइत्ता, परिसाडइत्ता परिविद्धंसत्ता अण्णे अपुव्वे वण्णगुणे फासणे उप्पाइत्ता आयसरीरोगाढा पोग्गले सव्वप्पणयाए आहारमाहरेंति ।
[१८] भगवन्! वे जीव क्या आहार करते हैं ?
गौतम ! वे द्रव्य से अनन्तप्रदेशी पुद्गलों का आहार करते हैं, क्षेत्र से असंख्य प्रदेशावगाढ पुद्गलों का आहार करते हैं, काल से किसी भी समय की स्थिति वाले पुद्गलों का आहार करते हैं, भाव से वर्ण वाले, गंध वाले, रस वाले और स्पर्श वाले पुद्गलों का आहार करते हैं ।
प्र. - भगवन्! भाव से जिन वर्ण वाले पुद्गलों का आहार करते हैं, वे एक वर्ण वाले, दो वर्ण वाले, तीन वर्ण वाले, चार वर्ण वाले या पंच वर्ण वाले हैं ?
उ.- गौतम ! स्थानमार्गणा की अपेक्षा से एक वर्ण वाले, दो वर्ण वाले, तीन वर्ण वाले, चार वर्ण वाल, पंच वर्ण वाले पुद्गलों का आहार करते हैं । भेदमार्गणा की अपेक्षा काले पुद्गलों का भी आहार करते हैं यावत् सफेद पुद्गलों का भी आहार करते हैं ।
प्र. - भंते! वर्ण से जिन काले पुद्गलों का आहार करते हैं वे क्या एकगुण काले हैं यावत् अनन्तगुण
काले हैं ?