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________________ २६] [जीवाजीवाभिगमसूत्र गोयमा! चत्तारि पजत्तीओ पण्णत्ताओ, तं जहा-आहारपज्जत्ती, सरीरपजत्ती, इंदियपज्जत्ती,आणपाणुपज्जत्ती। तेसिं णं भंते! जीवाणं कति अपज्जत्तीओ पण्णत्ताओ? गोयमा! चत्तारि अपज्जीत्तीओ पण्णत्ताओ, तं जहा- आहार-अपजत्ती जाव आणपाणुअपज्जत्ती। [१२] भगवन् ! उन जीवों के कितनी पर्याप्तियाँ कही गई हैं ? गौतम! चार पर्याप्तियाँ कही गई हैं। जैसे- १. आहारपर्याप्ति, २. शरीरपर्याप्ति, ३. इन्द्रियपर्याप्ति और ४. श्वासोच्छ्वासपर्याप्ति। हे भगवन्! उन जीवों के कितनी अपर्याप्तियाँ कही गई हैं ? गौतम! चार अपर्याप्तियाँ कही गई हैं। यथा-आहार-अपर्याप्ति यावत् श्वासोच्छ्वास-अपर्याप्ति। [१३] ते णं भंते! जीवा किं सम्मदिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, सम्ममिच्छादिट्ठी। . गोयमा! णो सम्मदिट्ठी, मिच्छादिट्ठी, णो सम्ममिच्छादिट्ठी। [१३] भगवन् ! वे जीव सम्यग्दृष्टि हैं, मिथ्यादृष्टि हैं या सम्यग्-मिथ्यादृष्टि (मिश्रदृष्टि) हैं ? गौतम! वे सम्यग्दृष्टि नहीं हैं, मिथ्यादृष्टि हैं, सम्यग्-मिथ्यादृष्टि (मिश्रदृष्टि) भी नहीं हैं। [१४] ते णंभंते! जीवा किं चक्खुदंसणी,अचक्खुदंसणी,ओहिदसणी, केवलदसणी। गोयमा! नो चक्खुदंसणी, अचक्खुदंसणी, नो ओहिदंसणी, नो केवलदसणी। [१४] भगवन्! वे जीव चक्षुदर्शनी हैं, अचक्षुदर्शनी हैं, अवधिदर्शनी हैं या केवलदर्शनी हैं ? गौतम! वे जीव चक्षुदर्शनी नहीं हैं, अचक्षुदर्शनी हैं, अवधिदर्शनी नहीं हैं, केवलदर्शनी नहीं हैं। [१५] ते णं भंते! जीव किं णाणी, अण्णाणी? गोयमा! नो णाणी, अण्णाणी।नियमा दुअण्णाणी, तंजहा-मति-अन्नाणी, सुय-अण्णाणी य। [१५] भगवन् ! वे जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? गौतम! वे ज्ञानी नहीं, अज्ञानी हैं। वे नियम से (निश्चित रूप से) दो अज्ञानवाले होते हैं-मतिअज्ञानी और श्रुत-अज्ञानी। [१६] ते णं भंते! जीवा किं मणजोगी, वयजोगी, कायजोगी ? गोयमा! नो मणजोगी, नो वयजोगी, कायजोगी। [१६] भगवन्! वे जीव क्या मनोयोग वाले, वचनयोग वाले और काययोग वाले हैं ? गौतम! वे मनोयोग वाले नहीं, वचनयोग वाले नहीं, काययोग वाले हैं । [१७] ते णं भंते! जीवा किं सागारोवउत्ता अणागारोवउत्ता?
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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