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________________ तृतीय प्रतिपत्ति :जंबूद्वीप क्यों कहलाता हैं ?] [४४९ १०. विशाला-आठ योजनप्रमाण विशाल होने से यह विशाला-विस्तृता कही जाती है। ११. सुजाता-विशुद्ध मणि, कनक, रत्न आदि से निर्मित होने से यह सुजाता है, जन्मदोष रहिता है। १२. सुमना-जिसके कारण से मन शोभन-अच्छा होता है वह सुमना है। वृत्तिकार के अनुसार इन नामों का क्रम इस प्रकार है-१. सुदर्शना, २. अमोघा, ३. सुप्रबुद्धा, ४. यशोधरा, ५. सुभद्रा, ६. विशाला, ७. सुजाता, ८. सुमना, ९. विहेहजम्बू, १०. सौमनस्या, ११. नियता, १२. नित्यमंडिता। जम्बूद्वीप को जम्बूद्वीप कहने के कारण इस प्रकार बताये हैं-(१) जंबूवृक्ष से उपलक्षित होने के कारण यह जम्बूद्वीप कहलाता है। (२) जम्बूद्वीप के उत्तरकुरु क्षेत्र में यहाँ वहाँ स्थान-स्थान पर बहुत से जम्बूवृक्ष, जम्बूवन और जम्बूवनखण्ड हैं इसलिए भी यह जम्बूद्वीप कहलाता है। एक जातीय वृक्षसमुदाय को वन कहते हैं और अनेक जातीय वृक्षसमूह को वनखण्ड कहते हैं। (३) जम्बू नाम शाश्वत होने से भी यह जम्बूद्वीप कहलाता है। जम्बूद्वीप में चन्द्रादि की संख्या १५२. जंबूद्दीवेणं भंते ! दीवे कति चंदा पभासिंसु वा पभासेंति वा पभासिस्संति वा? कति सूरिया तविंसु वा तवंति वा तविस्संति वा ? कति नक्खत्ता जोयं जोयंसु वा जोयंति वा जोयस्संति वा ? कति महग्गहा चारं चरिंसु वा चरिंति वा चरिस्संति वा ? केवइयाओ तारागणकोडाकोडीओ सोहंसु वा सोहंति वा सोहेस्संति वा? गोयमा ! जंबूद्दीवे णं दीवे दो चंदा पभासिंसु वा, पभासेंति वा पभासिस्संति वा। दो सूरिया तविंसुवा तवेंति वा तविस्संति वा ।छप्पन्नं नक्खत्ताजोगंजोएंसुवाजोएंति वा जोइस्संति वा। छावत्तरं गहसयं चारं चरिंसु वा चरेंति वा चरिस्संति वा। एगं च सयसहस्सं तेत्तीसं खलु भवे सहस्साइं। णव य सया पन्नासा तारागणकोडकोडीणं॥१॥ सोभिंसु वा सोभंति वा सोभिस्संति वा। १५३. हे भगवन् ! जम्बूद्वीप नामक द्वीप में कितने चन्द्र चमकते थे, चमकते हैं-उद्योत करते हैं और चमकेंगे? कितने सूर्य तपते थे, तपते हैं और तपेंगे? कितने नक्षत्र (चन्द्रमा के साथ) योग करते थे, करते हैं, करेंगे? कितने महाग्रह आकाश में चलते थे, चलते हैं और चलेंगे? कितने कोडाकोडी तारागण शोभित होते थे, शोभित होते हैं और शोभित होंगे? गौतम ! जंबूद्वीप में दो चन्द्रमा उद्योत करते थे, करते हैं और करेंगे। दो सूर्य तपते थे, तपते हैं और तपेंगे। छप्पन नक्षत्र चन्द्रमा से योग करते थे, योग करते हैं और योग करेंगे। एक सौ छियत्तर महाग्रह आकाश में विचरण करते थे, करते हैं और विचरण करेंगे। एक लाख तेतीस हजार नौ सौ पचास कोडाकोडी तारागण आकाश में शोभित होते थे, शोभित होते हैं और शोभित होंगे।
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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