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________________ ४४८ ] [जीवाजीवाभिगमसूत्र ६. सौमनस्या, ७. नियता, ८. नित्यमंडिता, ९. सुभद्रा, १०. विशाला, ११. सुजाता, १२. सुमना । सुदर्शना जंबू के ये १२ पर्यायवाची नाम हैं । हे भगवन् ! जंबूसुदर्शना को जंबूसुदर्शना क्यों कहा जाता है ? गौतम ! जंबूसुदर्शना में जंबूद्वीप का अधिपति अनादृत नाम का महर्द्धिक देव रहता है। यावत् उसकी एक पल्योपम की स्थिति है। वह चार हजार सामानिक देवों यावत् जंबूद्वीप की जंबूसुदर्शना का और अनादृता राजधानी का यावत् आधिपत्य करता हुआ विचरता है । हे भगवन् ! अनादृत देव की अनादृता राजधानी कहाँ है ? गौतम ! पूर्व में कही हुई विजया राजधानी की पूरी वक्तव्यता यहाँ कहनी चाहिए यावत् वहां महर्द्धिक देव रहता है । गौतम ! अन्य कारण यह है कि जम्बूद्वीप नामक द्वीप में यहाँ वहाँ स्थान स्थान पर जम्बूवृक्ष, जंबूवन और जंबूवनखंड हैं जो नित्य कुसुमित रहते है यावत् श्री से अतीव अतीव उपशोभित होते विद्यमान हैं। इस कारण गौतम ! जम्बूद्वीप, जम्बूद्वीप कहलाता है। अथवा यह भी कारण है कि जम्बूद्वीप यह शाश्वत नामधेय है । यह पहले नहीं था - ऐसा नहीं, वर्तमान में नहीं है, ऐसा भी नहीं और भविष्य में नहीं होगा ऐसा नहीं, यावत् यह नित्य है । विवेचन प्रस्तुत सूत्र में जम्बूसुदर्शना के बारह नाम बताये गये हैं। वे नाम सार्थक नाम हैं और विशेष अभिप्रायों को लिये हैं । उन नामों की सार्थकता इस प्रकार है १. सुदर्शना - अति सुन्दर और नयन मनोहारी होने से यह सुदर्शना कही जाती है । २. अमोघा - अपने नाम को सफल करने वाली होने से यह अमोघा कहलाती है । इसके होने से ही जम्बूद्वीप का आधिपत्य सार्थक और सफल होता है, अन्यथा नहीं । अतः यह अमोघा ऐसे सार्थक नाम वाली है । ३. सुप्रबुद्धा - मणि, कनक और रत्नों से सदा जगमगाती रहती है, अतएव यह सुप्रबुद्धा - उन्निद्र है। ४. यशोधरा - इसके कारण ही जम्बूद्वीप का यश त्रिभुवन में व्याप्त है अतएव इसे यशोधरा कहना उचित ही है। ५. विदेहजम्बू - विदेह के अन्तर्गत जम्बूद्वीप के उत्तरकुरुक्षेत्र में होने के कारण विदेहजम्बू है । ६. सौमनस्या - मन की प्रसन्नता का कारण होने से सौमनस्या है। ७. नियता - सर्वकाल अवस्थित होने से नियता है । ८. नित्यमंडिता - सदा भूषणों से भूषित होने से नित्यमंडिता है । ९. सुभद्रा - सदाकाल कल्याण - भागिनी है । इसका अधिष्ठाता महर्द्धिक देव होने से यह कदापि उपद्रवग्रस्त नहीं होती ।
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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