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________________ तृतीय प्रतिपत्ति : विजयदेव का उपपात और उसका अभिषेक] [४२३ मुखमण्डप में आता है। वहाँ दक्षिण के मुखमण्डप की भांति सब विधि करके उत्तर द्वार से निकल कर सिद्धायतन के पूर्वद्वार पर आता है। वहाँ पूर्ववत् अर्चना करके पूर्व के मुखमण्डप के दक्षिण, उत्तर और पूर्ववर्ती द्वारों में क्रम से पूर्वोक्त रीति से पूजा करके पूर्वद्वार से निकल कर पूर्वप्रेक्षामण्डप में आकर पूर्ववत् अर्चना करता है। फिर पूर्व रीति से क्रमशः चैत्यस्तूप, जिनप्रतिमा, चैत्यवृक्ष, माहेन्द्रध्वज और नन्दापुष्करिणी की पूजा-अर्चना करता है। वहाँ से सुधर्मा सभा की ओर आने का संकल्प करता है। १४२. [४] तए णं तस्स विजयस्स देवस्स चत्तारि सामाणियसाहस्सीओ एयप्पभिई जाव सव्विड्डीए जावणाइयरवेणं जेणेव सभा सुहम्मा तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तं णं सभं सुहम्मं अणुप्पयाहिणीकरेमाणे पुरथिमिल्लेणं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता आलोए जिणसकहाणं पणामं करेइ, करित्ताजेणेव मणिपेढिया जेणेव माणवचेइयखंभेजेणेव वइरामया गोलवट्टसमुग्गका तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता लोमहत्थगंगेण्हइ, गेण्हित्ता वइरामए गोलवट्टसमुग्गए लोमहत्थएण पमज्जइ, पमज्जित्ता वइरामए गोलवट्टसमुग्गए विहाडेइ, विहाडित्ता, जिणसकहाओ लोमहत्थेणं पमज्जइ, पमज्जित्ता सुरभिणा गंधोदगेणं तिसत्तखुत्तो जिणसकहाओ पक्खालेइ, पक्खालित्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं अणुलिंपइ अणुलिंपित्ता अग्गेहिं वरेहिं गंधेहिं मल्लेहिं य अच्चिणइ, अच्चिणित्ता धूवंदलयइ, दलइत्ता वइरामएसु गोलवट्टसमुग्गएसु पडिणिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता माणवकं चेइयखंभं लोमहत्थएणं पमज्जइ, पमज्जित्ता दिव्वाए उदगधाराए अब्भुक्खेइ, अब्भुक्खित्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं चच्चए दलयइ, दलइत्ता पुप्फारुहणं जाव आसत्तोसत्त० कयग्गाह० धूवंदलयइ, दलइत्ता जेणेव सभाए सुहम्माए बहुमज्झदेसभाए तं चेव, जेणेव सीहासणे तेणेव जहा दारच्चणिया जेणेव देवसयणिज्जे तं चेव, जेणेव खुड्डागे महिंदज्झए तं चेव, जेणेव पहरणकोसे चोप्पाले तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पत्तेयं पत्तेयं पहरणाईलोमहत्थएणं पमज्जइं, पमज्जित्ता सरसेणं गोसीसचंदणेणं तहेव सव्वं सेसं पि दक्खिणदारं आदिकाउं तहेव णेयव्वं जाव पुरच्छिमिल्ला णंदापुक्खरिणी। सव्वाणं सभाणं जहा सुहम्माए सभाए तह अच्चणिया उववायसभाए णवरि देवसयणिज्जस्स अच्चणिया, सेसासु सीहासणाण अच्चणिया, हरयस्स जहा णंदाए पुक्खरिणीए अच्चणिया, ववसायसभाए पोत्थयरयणं लोम० दिव्वाए उदगधाराए सरसेणं गोसीसचंदणेणं अणुलिंपइ, अग्गेहिं वरेहिं गंधेहिं य मल्लेहिं य अच्चिणइ, अच्चिणित्ता सीहासणं लोमहत्थएणं पमज्जइ जाव धूवं दलयइ सेसं तं चेव, णंदाए जहा हरयस्स तहा जेणेव बलिपीढं तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता आभिओगिए देवे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासीखिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! विजयाए रायहाणीए सिंघाडगेसु य चउक्केसु य चच्चरेसु य चउम्मुहेसुये महापहपहेसुय पासाएसु य पागारेसुय अट्टालएसु य चरियासुय दारेसु य गोपुरेसु यतोरणेसुयवावीसु य पुक्खरिणीसुय जाव बिलपंतियासु य आरामेसु य उज्जाणेसु य काणणेसु य वणेसु य वणसंडेसु य वणराईसु य अच्चणियं करेह करित्ता ममेयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चप्पिणह। तए णं ते आभिओगिआ देवा विजएणं देवेणं एवं वुत्ता समाणा जाव हट्ठतुट्ठा विणएणं
SR No.003454
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Part 01 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Rajendramuni, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1989
Total Pages498
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_jivajivabhigam
File Size11 MB
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